________________ // 38 // शाम्बजन्मादिस्वरूपम् | सखाः विशेषतः // 87 // स्वतुल्यं देहि तत्तस्याः पुत्रमित्यथितोऽम्बया / आहाय्य चक्रेऽसौ जाम्बवतीं भामाऽऽकृति कृती // 88 // रुक्मिण्या प्रैपि सा भामावासके रजनीमुखे / असत्यसत्यां तां रेमे दत्वा हारं हरिर्मुदा // 89 // तदैव देवः प्रच्युत्य शुक्रात्कल्पात् स | कैटभः / तस्याः कुक्षाववातारीत्केशरिस्वमसूचितः // 90 // ययौ जाम्बवती तुष्टहृदया निजमन्दिरे / विलोक्य सत्यां सत्यां च प्राप्तां कृष्णो व्यचिन्तयत् / / 91 // भोगातृप्तिरहो स्त्रीणां यद्याताऽपि झटित्यसौ / ववले च्छलितोऽहं वा कृत्वैतन्मूर्तिमन्यया // 92 // इयं / विलक्षाऽभून्मेति कृष्णो भामामसेवत / भेरी क्षोभकरीं तस्य प्रद्युम्नोऽताडयत्तदा // 13 // भीतोऽच्युतो यामिकेभ्यो ज्ञात्वा प्रद्युम्नचेष्टितम् / दध्यौ वरं सपत्नीह न सपत्नीसुतः पुनः॥९४।। मेने समयसम्भोगाद्भामाभाविनं सुतम् / किश्चिद्भीरं हरिस्तां चापुण्यां ही भवितव्यता // 95 // हरिजर्जाम्बवतीं प्रातः प्रयातो रुक्मिणीगृहे / सदिव्यहारशृङ्गारां वीक्ष्य साक्षेपमैक्ष्यत // 16 // प्रोचे जाम्बवती स्मित्वा स्वामिश्चक्रीयिताऽर्थतः। विशेषाद्वीक्षसे कि ? मां यतः सैवाऽस्मि ते प्रिया // 17 // दत्तस्ते केन हारोऽयमिति पृष्टाऽच्युतेन सा / अशंसत्वत्प्रसादेन स्मरस्यात्मकृतं न किम् ? // 98 // सिंहः स्वप्नं हरेः साऽऽख्यद् ह्याख्येत्सोऽपि सुतस्तव / भावी प्रद्युम्नवत्प्रौढद्युम्नः सर्वकलानिधिः // 19 // कालेऽसूत सुतं पूर्ण सिंहीवाद्भुतविक्रमम् / राज्ञी जाम्बवती शाम्बसंज्ञं चक्रे च केशवः // 600|| दारुको जयसेनश्च सारथेः सचिवस्य तु / सुबुद्धिरित्यमी जञ्जः समं शाम्बेन नन्दनाः || *भामायास्तु सुतं चक्रे हरिर्नाम्नाऽनुभानुकम् / सभयाधानतो भीरु भीरुकेत्यपराभिधम् // 2 / / तनुजाः कृष्णपत्नीनां परासामपि जज्ञिरे। | सुरस्त्रीगीतदोर्दण्डचण्डिमोद्दण्डविक्रमाः॥३॥ सहोदयव्ययैः शाम्बो मन्त्रिसारथिसूनुभिः / सार्द्ध वृद्धिमधाद्भानुवि भानुभिरुत्कटैः | // 4 // सकलाश्च कला शाम्ब पूर्व सङ्केतिता इव / स्वयं सिषेविरे कान्ताः प्रज्ञादूत्यनुरञ्जिताः // 5 / / पूर्वजन्मानुभावेन प्रद्युम्नस्याति *183%82878HER R A // 38 // D