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________________ श्रीअमम // 78|| जिनचरित्रम् सर्वगिलपार्श्वे याचि। तरत्नः मुञ्जः तेन तिरस्कृतः द्रुतम् // 56 // इति विप्रगिरा द्वारपालैः स गलहस्तितः / निर्गतो हाऽगमंस्तानि रत्नानीति विषादवान् // 57 // तद्वारि नित्यमारात्रे प्रवेश प्रतिपालयन् / स उर्ध्वशोषमशुपत् नष्टस्खो हि पिशाचकी // 58 / / रतिं च क्वाप्यविन्दन् स गत्वा चिन्तादितोऽन्यदा / | उपाविक्षत्परिसरसरस्तीरतरोस्तले // 59 // दैवात्तत्रास्य कमलतनयो विमलोऽमिलत् / तमत्यन्तं सचिन्तं स मत्वाऽप्राक्षीच कारणम् // 60 // निवेदिते स्ववृत्तान्ते मुझेन विमलोऽब्रवीत् / मा ताम्य सौम्य ! कः? शोको धने पारिप्लवे गते // 61 // प्रणेशुनिधिकुम्भाः षट् ममाप्यत्रैव सम्प्रति / दुःखात्तस्माच्च पुण्यात्मा ब्रतमादत्त मत्पिता // 62 / / मुझेन कथमित्युक्ते स्ववृत्तं विमलोऽवदत् / मुञ्जः श्रुत्वा तदप्युच्चैः परिदेवितवानिति // 6 // चपलां कमलामेनां खलां जानामि किन्तु मे / रत्ननाशव्यथा कृन्तत्यन्तर्म| माण्यऽहनिशम् // 64 // हहा मृष्टोऽस्मि मृष्टोऽस्मि तेन विश्वस्तघातिना / व्यापारिणो धनग्राह्यो दुर्दशो मादृशैर्नृपः॥६५॥ मतिराशा गतिस्त्राणमुपायः शरणं सुहृत् / अत्रार्थे क्वापि साहाय्यो नास्ति निःपुण्यकस्य मे // 61 / / विमलः परदुःखार्तस्तमाश्वासितवानिति / मा गाः खेदं सुखोपायस्तवैकः कथ्यते शृणु // 6 // अत्रैवाऽस्ति वसन्तश्रीरिति वृद्धपणाङ्गना / धियाढ्यायाः पुरो यस्या वागीशोऽपि दरिद्रति // 68 // वहन्ति तन्मतेः खण्डकपरेणादराजलम् / सर्वगिलस्य धौानि तामुपास्वाऽर्थसिद्धये // 69 // व्यसनाब्धिमिमं घोरं तर तबुद्धिबेडया / विषस्येव विष साऽस्य धूर्त्ता धूर्तस्य भेषजम् // 70 // ततः कार्पटिकः पुष्पचतुःसरकरोऽन्वहम् / तां सिषेवे तयाऽन्येद्युः पृष्टः सर्व जगाद च // 7 // | वसन्तश्रीरिदं कार्यमङ्गीकृत्याऽब्रवीदऽमुम् / मा यासीवत्स! मत्सेवायासमार्गमतः परम् / / 72 // किन्त्वितो दिवसादन्हि नवमे * प्रहरद्वये / सह यातास्व कार्यायावयोः सर्वगिलौकसि // 73 // मत्समक्षं तदा न्यासं याच्यः सर्वगिलस्त्वया। दास्यत्येव न चेद्देयं | सर्ग-३ // 78 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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