________________ जिन चरित्रम् कमलेन राजकुले निवेदिते राज्ञा कृतो न्यायः श्रीअमम- | तत्तथ्यं मयाऽस्य धनमाददे // 44 // किन्त्वनेनापि मे किश्चिद् गृहीतं नाथ ! वर्तते / तत्प्रदापय भूपा हि तुलावत्समवृत्तयः॥४५॥ अथ प्रत्यर्पयाम्यस्य देयद्रव्यं न यद्यहम् / ममार्हसि ततः कर्तुं निग्रहं हीनवादिनः // 46 // च०क०॥ किमात्तमिति भूपेन पृष्टः स // 72 // | स्पष्टमाख्यत / कर्णौष्ठनासिक रूपसर्वखं हृतमात्मनः॥४७॥ कथमित्युदिते राज्ञा कमलम्लानिदामऽसौ / सभ्याश्चर्यकृतं स्वांगच्छेदोal त्पत्तिमचीकथत् // 48 // यदा दास्यसि कर्णादि तदास्माल्लप्स्यसे धनम् / इत्युक्त्वा कमलं कुन्दसंयुतं व्यसृजन्नृपः // 49 // मानम्ला- | निधनभ्रंशविलक्ष्यो ध्यामलाननः / कमलो गृहमभ्येत्य वैराग्यात्सुतमुक्तवान् // 50 // यच्छन्ति हित्वा गच्छन्त्यो दुःख मृत्योः समं | श्रियः / वरं दुरादनार्यास्तास्त्यज्यन्ते स्वयमेव तत् // 5 / / न शक्नुवन्ति किन्त्वेताः विमोक्तुमविवेकिनः / अकामा एव ताभिस्तु | मुक्ताः शोचन्ति केवलम् // 52 // हृता तेन हठाल्लक्ष्मीः पश्यतोऽपि यथा मम / हरिष्यत्यचिरान्नूनं कृतान्तो जीवितं तथा // 53 // | तदाऽऽदास्ये व्रतं खं तु कुटुम्बभरमुद्वह / उक्त्वेति स्वपदे न्यस्य विमलं सोऽग्रहीद्वतम् // 54 // पं०कु०॥ कमलाख्यो व्रती सोऽहं | कुर्वे पितृवने तपः / सोऽयं कुन्दश्च किञ्चव ममात्र व्रतकारणम् // 55 / / श्रुत्वेति दुर्मतिर्दीनो निराशः स्वाश्रयं ययौ / विवेकोऽस्य नतूद्भिन्नो मुनिवाक्यैर्मनागपि // 56 // किन्तु प्रत्युत दुर्नीतिहेतुरेषा कथाऽभवत् / अहेर्मुखगतं किं न स्वात्यम्भोऽपि भवेद् विषम् // 57 / / | स दध्यौ भाग्यवान् कुन्दो येन प्राप्तमियद् धनम् / यन्मतिस्फूर्जितं चैवं विपक्षविजयोर्जितम् // 58 // गत्वा तदहमप्याशु गृण्हेहि | तन्निधिधनम् / तस्माल्लब्धमहानन्दः कुन्दवद् विलसामि च // 59 / / सुमतिप्रतिघाताय प्रयुज्य छद्म किञ्चन / धनं स्थिरीकरिष्यामि लोभनन्दिसुतोऽस्मि यत् // 60 // तत्र गत्वा गतो ग दुधृत्य धनमग्रहीत् / स्थानं यथास्थितं कृत्वाऽन्यत्र नीत्वा न्यधत्त च // 6 // |सुमतिं चान्यदाऽभाणीत् समस्ते क्षपिते धने / दीव्यताऽद्य मयाऽहारि निजशीष पणीकृतम् // 62 / / तनिधानीकृतद्रव्याद् विभ // 72 //