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________________ जिनचरित्रम् साधुना | स्ववैराग्य हेतुकुन्दस्वरूपं प्रदशिंतम् श्रीअमम- कामधुक् // 8 // नतु तुच्छं धनं को हि लवणं याचतेऽम्बुधेः। वं पुनर्विप्रलब्धोऽसि तेनेदं तद् व्यवस्यसि // 9 // यु०॥ नाम किञ्चि- न्मया दत्तं तस्मै मिथ्यापलापिने। ममैष केवलं जज्ञे व्रतादानस्य कारणम् // 10 // कथं ? तवायं भगवनगमद् व्रतहेतुताम् / इति- // 7 // दुर्मतिना पृष्टः स साधुरिदमाख्यत // 11 // ____ अत्राऽभूत् कमलो नाम महेभ्यः कृपणाग्रणीः / सोऽन्यदा मन्त्रयामास विमलाख्यं सुतं रहः // 12 // लक्ष्मीरपुच्छा वत्साऽस्ति | all पूर्वजैः स्वेन चार्जिता / कश्चिनिश्चितमस्यास्तच्चिन्त्यतां रक्षणे विधिः // 13 // नृपादीनामिय दंष्ट्रान्तरस्थव गृहे सती / स्थाप्यतां तद् | बहिः क्वापि सर्वेषामप्यगोचरे // 14 // आलोच्येति युतस्तेन चक्षुर्दिक्षु क्षिपन्भयात् / गत्वा श्मशाने निभृतपदं रात्रावलक्षितः // 15 // || गुप्ते स्थाने गुरुं गतं खनित्वा स्वर्णपूरितान् / निवेश्य स्वर्णकुम्भान् पट् यत्नाद् गर्तमपूरयत् // 16 // त्रि.वि. कुन्दाख्यः कितवो दैवानिर्गच्छताविमौ तदा / इङ्गिताकारवित् प्रेक्ष्य छन्नोऽनुपदमेत्य च // 17 // द्रष्टुं तञ्चेष्टितं श्वासं निरुध्य पतितो भुवि / मृतच्छद्मना | स्थितो नातिदूरे तत्सर्वमैक्षत / / 18 // अथोचे कमलः पुत्रं गत्वा पश्य समन्ततः / मा नाम केनचित् दृष्टमिदं स्यात् क्वापि तस्थुषा | // 19 // व्याजहे कमलस्तात ! नितान्तं निपुणो भवान् / निशि श्मशाने भीमेऽस्मिन् प्रार्थितोऽप्येति कोऽपि किम् ? // 20 // तथापि | यत्ने को दोष इति पित्रोदिते सुतः। भ्राम्यन् समन्तादऽद्राक्षीतत्र कुन्दं तथास्थितम् // 21 // आगत्य चाऽवदत्कश्चिदस्ति कार्पटिको | मृतः / पिताऽब्रवीन्मृतच्छद्म कृत्वा मा नाम स स्थितः // 22 // तद् याहि शख्या तस्यांग छित्त्वा किश्चिदिहानय / मृतस्य जीवतो | वेत्थं व्यक्तिः सद्यो भविष्यति // 23 // गत्वाऽस्य विमलः कर्णमेक क्षुरिकयाऽच्छिदत् / आगत्य च शशंसैतद् व्यश्वसीम पुनः पिता // 24 // क्षुद्रश्चैवमनिविण्णः सुतं प्रेष्य पुनः पुनः / तस्य द्वितीय श्रवणं नासामोष्ठमचिच्छिदत् // 25 // अस्पन्दमानः कुन्दस्तु नातिदूरे तत्सर्वमेक्षत निपुणो भवान् / निशि मास्थितम् // 21 // आग लय / मृतस्य जीवता // 7 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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