________________ जिन चरित्रम् मूलदेवेन सह नन्दस्य मैत्री श्रीअमम | गेहादि केवलं त्वां विना कथम् ? / जीविष्यामीत्यहो व्याघ्रदुःतटीवैशसं मम // 61 // युग्मम् // एकैकगोलश्चैकैकदीनारेण यदार्घति तदैव ध्रुवमागच्छेर्मा भूर्मां द्रष्टुमुत्सुकः // 62 // अथ प्रियावियोगातिविक्तिवः कथमप्यसौ / इभ्यः प्रतस्थे निर्व्याजशकुनप्रेरितः // 62 / / | पुरः // 63 // सुन्दर्यप्यागमद्नेहं पत्यौ तरुतिरोहिते। प्रभासाख्य पुरं प्राप सोऽपि युक्त्या तया व्रजन् // 64 // सपण्यमुपनिन्ये | bell च समानीय चतुःपथे / सतुलाधारिणस्तत्र चामिलन् व्यवहारिणः // 65 // अथोद्घट्टे कृते पण्यं तदालोक्यातिपिच्छलम् / | हसन्तो ददतोऽन्योऽन्यं तालिकास्ते गृहान् ययुः॥६६॥ स पण्यं भाण्डशालासु न्यस्यादाय गृहं स्थितः / इतो धूर्तपतिमूलदेवस्तत्र समाययौ // 67 // दैवात्तेन समं तस्याऽसमं सख्यमजायत / गृहागमनदानाधैरन्योन्यं ववृधे च तत् // 68 // पृष्टो नन्दोऽन्यदा तत्रागमावस्थानकारणम् / रहः शशंस धूर्तस्य वर्णयन् गृहिणीगुणान् // 69 // मूलदेवोऽवदन्मूढ ! गृहिणी स्वैरिणी तव / धूर्तया त्वमुपायेन तया निर्वासितोऽसि तत् // 70 // नन्दः कण्णौ पिधायोचे शान्तं पापं सतीमपि / विब्रुवन् सुन्दरीमेवं प्रत्यवायेन लिप्यसे // 71 // अद्यापि स्रीचरितस्योपयैव प्लवसे सखे / न श्रद्दधासि तेनेदमित्यवोचत धूर्तराट् // 72 // उवाच नन्दो नैकोऽर्घः खलस्य च गुलस्य च / स्त्रियः सदोषाः सन्त्यन्याः गुणमय्येव सुन्दरी // 73 // धूतः प्रोचे गुणान् दोपेष्वपि पश्यन्ति रागिणः / | अर्हन्ति नोपदेशं च सुप्रतीतमिदं भुवि // 74 // वं प्रत्येष्यसि दृष्ट्वाऽस्याश्चरित्राणि लोचनैः / तत्तानि दर्शयिष्यते नोपेक्ष्यो हि सुहजनः // 75|| करोमि किन्तूपायेन त्वत्पण्यस्य महार्यताम् / मन्मैत्रिकफलं ह्येतदित्युदित्वा गतस्ततः // 76 // धृत्तोंऽथ दिव्यशृंगारः पाश्वज्वलितदीपिके / आरूढो यत्रगरुडे भ्राम्यनिशि पुरोपरि // 77 // तं प्रणम्योन्मुखीभूय पौराः प्राञ्जलयोऽभ्यधुः / स्वामिन् ! प्रसीद नः प्रह्वान स्वं ज्ञापयितुमर्हसि // 78 // सोचोचन्नगरस्यास्स स्वामी यक्षो धनञ्जयः / अहं वः किश्चिदाख्यातुमागतोऽस्मि | बालस च गुलस्य च / स्त्रियः साख प्रत्येष्यसि दृष्ट्वाऽदित्युदित्वा गतस्ततः