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________________ // 57|| बकुलरत्नवृत्योलेग्नम् परम्परा इदृक्शासनं राज्ञस्तद्गुप्तं साध्यतामिदम् // 27 // याम्यरण्ये पुलिन्देभ्यो दन्तान् गृह्णामि दन्तिनाम् / छन्नान् प्रवेशयाम्यत्रोपायात् कार्य हि सिध्यति // 28 // तेनाप्यनुमतेऽर्थेऽस्मिन् दृढमित्रो महाटवीम् / कंकणालक्तकादीनि सहादाय द्रुतं ययौ // 29 // | तै हलेभ्यो जग्राह दन्तौघान् पूर्वमीलितान् / सुबद्धांस्तृणपिण्डान्तः शकटैरानिनाय च // 30 // प्रवेशे केवलं दन्तपुरापणपथोदरे। | तृणपिण्डेषु गौः कोऽपि देवादाननमक्षिपत् // 31 // आकृष्यमाणादेकस्मादकस्मात्तृणपिण्डकात् / दन्तस्य खण्डकं दैवात् खाटकृत्य |न्यपतद् भुवि // 32 // तद् दृष्ट्वा नगरारक्षाः समस्तांस्तृणपिण्डकान् / अन्विष्यन्तोऽधिकं दन्तान् सुबहूनुपलेभिरे // 33 // सदन्तं श| दृढमित्रं चोपनिन्युपतेद्रुतम् / वध्यमाज्ञापयेत्सोऽपि तमाज्ञाभंगकारिणम् // 34 // तत् श्रुत्वा धनमित्रोऽपि द्रुतमेत्य नृपान्तिकम् / | ऊचे देव ! निदेशान्मेऽमुना व्यवस्थितं ह्यदः // 35 // अहं खाम्यत्र वध्योऽस्मि नायं प्रेष्योऽपराध्यति / भृत्यदोषे प्रभोर्दण्ड इति नीतिरयं यतः॥३६।। आनाय्य राज्ञा पृष्टः सन् दृढमित्रोऽभ्यधादिति / अपि प्रत्यभिजानामि नैनं खाम्ये तु का कथा ? // 37 // hell अहं हि राजग्राह्योऽसि तदयं तव गोचरे। उपेत्य पतितो दीपे पतङ्ग इव धिक्कथं ? // 38 // तदाकर्ण्य तयोरुक्तं नितरां विस्मितो || नृपः / अप्राक्षीदभयं दत्त्वा सम्यक् तावप्यशंसताम् // 39 // हृष्टोऽभ्यधान्नृपः सौम्यौ कं नाम युवयोः स्तुवे / द्वयोरेवं मिथो मित्र कार्ये प्राणास्तृणोपमाः॥४०॥ तथाप्येवं कृतजगच्चमत्कारं व्यवस्थतः / सोत्कर्षा दृढमित्रस्य रेखा सत्पुरुषेष्वऽभूत् // 41 // श्रुत्वेति 3 दन्तप्रासादस्यानुमत्याऽनुगृह्य च / सन्मान्य तौ नरेन्द्रेण विसृष्टौ जग्मतुर्गृहम् // 42 // तद्भोः श्रेष्टिनमी प्राणाः स्वेनापि विशरारवः। मित्रार्थे यान्ति चेद्यान्तु पर्याप्तमियता न किम् ? // 43 // इत्यूक्तवति नासिक्ये शूरदेवः समागतः / स्वागतिक्या धनवत्या रचितो| चितगौरवः // 44 // मूलादाख्याय वृत्तान्तं क्षमयित्वा धनं घनम् / विधिना सम्प्रदत्ते स्म बकुलाय निजां सुताम् // 45 // अथ तत्र स्यानुमत्याऽनुगृह्य च / साना किम् ? // 43 // इत्यूक्तवाविधिना सम्प्रदत्ते स्मर // 57 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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