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________________ // 55 // कलया कलिंगेश यो सप्रिय सोऽपि स्य सपुत्र व्यापादनम् * तान्यानीयाऽर्पयिष्येऽहं राज्ञस्त्वेतानि नो पुनः॥९०॥ इत्युक्त्वाऽसिन् गते गेहं शस्त्रैस्तत्रेतरोप्यथ / तदर्धघटितं चक्रं तस्य चक्रे क्षणा दपि // 91 / / वेगेन याति तत् क्षिप्त पक्षिवत् स्खलिते पुनः। याति पश्चान्मुख द्वैतीयीकं तु स्खलिते पतेत् ॥९॥आयातो रथकृच्चक्रं दृष्ट्वा गत्वाशु भूभृते / शशंसेति बलाद्यस्य काकजंघो परान् नृपान् // 93 // व्यधात् स्वस्य वशे सोत्र कोकासोऽस्ति समागतः / | प्रतिकूले विधौ हि स्यान्मित्राद्विद्वेषिता न किम् ? // 94 // कलिंगेशेन विधृतः कोकासस्ताडितो विभुम् / आचख्यौ सप्रिय सोऽपि तेनाधार्यत कोपतः // 95 / / दण्डिताः स्मो वयमतस्तयोः सोऽन्नं न्यषेधयत् / अकारि काकपिंडी तु पौरैर्दुष्कीर्तिभीरुभिः // 16 // | कोकासमादिशद् राजा कुरु पुत्रशतस्य मे / प्रासादं शतभूमं वं पृथक्मध्ये चमत्कृते // 97 / / व्योमन्युत्पतता तेन त्वद्विज्ञानाप्त जन्मना / भूपालानहमप्याज्ञापयिष्याम्यऽखिलानथ // 98 // कोकासोऽपि सावहित्थं प्रतिपद्याशु तद्वचः। प्रच्छन्नं काकजंघस्य मुत| मेवमजिज्ञपत // 99 / / एनं सपुत्रं राजानं हन्ताऽस्म्यऽमुकवासरे / तत्रावश्यं त्वया गुप्तेनागम्यं सेनया सह // 500 // त्वष्टापि कृखा Nell प्रासादमारोप्य ससुतं नृपम् / अवधीत् कीलिकाघातैः संपुटीकृत्य तं द्रुतम् // 1 // सूनुना काकजंघस्याप्येत्योक्ते दिवसे पुरम् / आदा | याशु व्यमोच्येतां पितरौ सहवर्द्धकी // 2 // कृत्वा महोत्सवं तत्राऽवन्त्यां सर्वेप्यथाऽऽययुः / स्त्रीभिन्नमर्माऽभूदित्थं काकजंघोति दुःखितः // 3 // कथा कथारत्नकोशः सुकविः सुकविप्रीतिः / आख्यायैवं पितृपुत्रावत्रासः पुनरुक्तवान् // 4 // यद्वा रहस्यभेदोस्तु | तस्माच्च म्रियतामपि / यस्माद् युष्मत्कृते मृत्युमपि मन्ये महोत्सवम् / / 5 / / दृढमित्रः सुहृत्कार्य श्रूयते सात्विकाग्रणी / तृणवत्तुलयामास प्राणानऽक्रय्यदुर्लभान् // 6 // दृढमित्रः क इत्युक्तस्ताभ्यां कीरोऽभ्यधादिति / अस्ति दन्तपुरं स्वर्गस्येव लिप्यन्तरं पुरम् // 7 // दन्तवको नृपस्तत्र प्रजानां जनकोजनि / तस्य सत्यवती देवी दिव्यास्त्रं पुष्पधन्वनः // 8 // अमृद् गोऽन्यदा तस्यास्तत्प्रभावाच सह / / 500 // त्वष्टापि सूनुना काक कृत्वा महोत्सवं तत्रा // 55 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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