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________________ जिनचरित्रम् कोकासस्य कला: श्रीअमम- टत् सरोगवत् / / 72 // राद्धं तदाऽन्नं सूदेन यथाऽश्नाद्रंकवन मूहुः / सोऽभ्यक्तोऽन्येन चैकाहेरकृष्ट्वा तैलमोच्यत // 73 // आस्ते ते | a मत्समोऽन्यो यस्तैलमेतत् स कर्षतु / कृत्वेति सर्वे ते स्वामिवियोगाजगृहुव्रतम् // 74 // युग्मम् / / तैलेनाहिदह्यमानस्तेन तस्याऽभ- // 54 // | वत्क्रमात् / काककृष्णस्ततः काकजंघाख्यां सोऽगमञ्जनात् // 75 / / इतश्वासीत्तदा सोपारके दुर्भिक्षरूक्षता / आगादवन्त्यां कोकासो वर्तितु वर्द्धकिस्ततः // 76 // राज्ञः स्वं ज्ञीप्सुना तेन काष्ठपा| रापतवजैः / कोष्ठागारादऽहार्यन्त प्रत्यहं गन्धशालयः // 77 // नियुक्तः कथितं राजाऽऽहाय्य कोकासमादरात् / सूत्रधाराधिपं चक्रे नोन्नत्यै ? कस्य वा कलाः // 78 // तेन काष्ठमयश्चक्रे गरुडःमापतेः कृते / याति यः कीलिकायुक्त्या देवाध्वनि सजीववत् // 79 // तमारुह्य नृपो देव्या कोकासेन चान्वितः / व्योम्ना संचरमाणोऽगात्सर्वत्राऽस्खलितो भुवि / / 80 // व्योम्नाऽऽगत्य हनिष्यामि युष्मानिति वदन्नृपः / भापयित्वाऽकरोत्सर्लान् करदान् भृमिनायकान् // 8 // देवी तमन्यदैकान्ते पप्रच्छ गरुडः कथम् ? / काष्टैः कृतोप्ययं | व्योम्नि यात्यायाति निरंकुशः // 82 / / राजा त्वष्ट्रा निषिद्धोऽपि देव्याः प्रेम्णा वशीकृतः / तार्यगत्यागतिमर्माऽकथयत् कीलिका| द्वयम् // 83 // देवीं तामपराः प्रोचुस्तायः कीलिकया कया / गत्वा निवर्तते साऽप्यनयेति शरलाऽऽख्यत // 84 // एका सेाऽग्र हीद्राज्ञी तां निवर्तनकीलिकाम् / नृपस्तु तामसंभाल्य प्राग्वत् तायेण जग्मिवान् // 85 // निवस्य॑स्तत्सहचरी कीली त्वष्टापि हाऽस्म| रत् / तां विना रुष्टवत्तायोऽप्यवलद् वालितोपि न // 86 // अथोद्दामं व्रजस्तायो महावातास्तपक्षतिः / निपपात कलिंगेशपुरा सन्नसरोन्तरे // 87 // पुनः संघटयिष्यंस्तं शस्त्राण्यानेतुमुत्सुकः / ययौ पुरान्तः कोकासः काष्ठसूत्रभृतान्तिके // 88 // कर्मस्थाने नृप| स्यासीत्सोऽपि कुर्वन् रथं तदा / चक्रं चक्रेऽस्य तेनैकमन्यदर्द्धकृतं त्वभूत् / / 89 // कोकासेनाऽथितः शस्त्राण्यचेऽसौ स्वानि गेहतः। // 54 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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