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________________ श्रीअमम जिन चरित्रम् // 52 // रत्नवती प्रापणे' शूकस्य प्रपश्च: | प्रत्युपकारस्यावसरोऽयमुपस्थितः // 35 // उवाच च विपादेन कृतमेधि सखे ! सुखी। कार्य साधितमेवेदं दुःसाधमपि विद्धि च | // 36 // यदसौ श्रूयते शूरदेवः सूर्यैकभक्तिमान् / अत्र तत्कारितं चास्ति सूर्यदेवकुलं महत् // 37 // पद्मरागमयी भानोः प्रतिमा तत्र | | वर्तते / भक्त्या तां शूरदेवोऽपि त्रिसन्ध्यं विधिनार्चति // 38 // करोति मुकुटं सोऽर्कमस्तके केतकीदलैः / तदन्तर्मुश्च मां नीखा | सुगुप्तं विजने निशि // 39 // प्रातभूयोऽपि गृह्णीथा इत्युक्तो सो तथाऽकरोत् / इतो निशात्यये शूरदेवोऽचितुमगाद् रविम् // 40 // अवच्छन्नेन कीरेण स प्रोचे प्रविशन्नपि / आयुष्मन्नेहि कुशली कच्चित्त्वं सपरिच्छदः॥४१॥ अहं हि भानुस्वद्भक्तिभूरिभारवशीकृतः। त्वां द्रष्टुमागां कल्याणिन् ! स्वर्गात् किश्चिच्च शासितुम् // 42 // सूरदेवोऽवदद् देव ! कृतकृत्योऽस्मि सर्वथा / त्वदुत्थानुग्रहान्मन्ये खं विश्वोपरिवर्तिनम् // 43 // धन्यानां धुरि बद्धोऽस्मि स्वयमाभाषितस्वया। इदानीं श्रोतुमिच्छामि भगवंस्तव शासनम् // 44 // | मायादित्योऽवदद् वत्स ! त्वमेकमसमञ्जसम् / अकार्षीः सुमहत् कल्ये मतिमान्येन तत् शृणु // 45 // बकुलाय त्वमुद्वोढुं धनेन प्रार्थितां भृशम् / प्रत्युत प्रार्थ्य दातव्यां किं ? न रत्नवतीमदाः 1 // 46 // ममावतारो बकुलो रत्नदेव्यऽस्तु ते सुता। अनयोः संगम भक्त्वा |* महद् वैशसमाजयः॥४७॥ नष्टं न किञ्चिदऽद्यापि द्रुतं गत्वा धनान्तिकम् / उपरुध्य च तं पुत्र्या बकुलं परिणायय // 48 // मत्पू| जामपि पश्चात्त्वं विवेकिन् ! कर्तुमर्हसि / इत्युक्त्वा विरते कीरे शूरदेवः सविस्मयः॥४९॥ समन्यागत्य बन्धूनां प्रकाशमिदमाख्यत / | तत्प्रेरितो गृहीखा तान् प्रतस्थे धनवेश्मनि // 50 // धनेन प्रातरानीतः शुकः क्षिप्तश्च पञ्जरे / विधाय बकुलं पार्श्वे श्रेष्ठिनं गुप्तमब्रवीत // 51 // इत्थमित्थमिदं कार्य सिद्धं सौम्य विनिश्चय / रक्ष्यो रहस्यभेदोऽस्मिन् किन्तु कालान्तरादपि // 52 / / नो चेन्न विद्मः श्रुत्वेदं किं ? व्यवस्येद् वधूरिति / वैवाहिकाश्च वैरस्यं व्रजेयु१र्यशः स्फुरेत् // 53 // किमकथ्यं नृणां स्त्रीषु, स्त्रियस्तूत्तानचेतसः। स्त्रिभिभिं महद् वैशसमाप्रार्थ्य दातव्यां किं ? नाम अकार्षीः सुमहत् कल्यमालया। इदानीं श्रोतुमिच्छाल सक // 46 // ममावसामान्येन तत् शृणु मामि भगवस्तव शासनग्रहान्मन्ये / // 52 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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