________________ // 51 // वसन्ते दोलाकेलिकौतुकात् // 16 // इत्यनल्पान् विकल्पान् स यावत्तार्किकवद् व्यधात् / तावदुत्तीर्य सा तारं जगौ वीणालयानुगम् // 17 // च०क०॥ पक्षगायनतां प्राप्तः सवयोभिः सखीजनेः / सा कुमारी वृता रेजे भारतीवाऽमरीगणैः // 18 // कृताङ्गालङ्कतिः स्वेन ग्रथिते: कुसुमादिभिः / वनदेवीव सा तत्रोद्याने खेलन्त्यराजत // 19 // कलाकेलिरिवैतस्या द्वेधापि सकलाः कलाः / पश्यन्नेव रतित्यक्तो बकुलस्यो| व्याकुलो बकुलोऽभवत् // 20 // मनाक् शून्यमनास्तत्त्वोद्योगी योगीव तत्क्षणात् / क्रीडां विहाय द्रागेवोद्यानात्स गृहमागमत // 21 // पवने गमने विसृज्य सुहृदो वासगृहे तल्पमशिश्रियत् / लेमे तु न रतिं क्वापि तुच्छे मत्स्य इवाम्भसि // 22 // भोजनावसरे श्रेष्ठी श्रेष्ठिन्या | रत्नवती दर्शन तमजूहवत् / सोऽप्यूचे मातरऽपटुवपु क्ष्येऽद्य नाऽहम् // 23 // तयागत्य तथाख्याते श्रेष्ठी तत्र स्वयं ययौ / आध्यात्मिक जवा अरतिश्च च्छेकोऽलक्षयत्तदऽपाटवम् // 24 // उत्थाय सुहृदस्तस्याऽहूय हेतुमपाटवे / सुतस्याऽपृच्छदेतेऽपि यथावृत्तमचीकथन // 25 // सोऽथ | गत्वा पुनः पुत्र ! न्याय्ये कार्येऽत्र नाहेसि / बैमनस्यमिदं कर्तुमित्युक्त्वा तमभोजयत् // 26 // भुक्तोत्तरं सबन्धुश्च शरदेवग्रहं ययौ। सम्भ्रमात्तेन क्लप्सोरुगौरवः स्माह सादरम् / / 27 / / सार्थवाहावयोः प्रीतिः पुराप्यस्ति निरन्तरा / किन्तु स्वाजन्यघटनादधुना क्रियता दृढा // 28 // अस्ति मे बकुलः पुत्रः कन्या रत्नवती तव / समागमस्तयोरस्तु ज्योत्स्नाचन्द्रमसोरिव // 29 // स प्रोचे युक्तमेतन्नौ | समानज्ञातिवित्तयोः। किन्तु वैधम्मिकायैषा न देयेत्याश्रवो मम // 30 // वं श्रावकोऽस्म्यहं त्वमि भक्तः स्वामिनि भास्करे / / वैवाहिकत्वमायत्यां साधु स्याद्धि सधर्मणोः // 31 // प्रत्यादिष्टस्ततः श्रेष्ठी विषण्णो गृहमागमत् / विज्ञाय बकुलोऽप्येतत्प्रपेदे प्रा-Tel ग्दशां पुनः // 32 // धनो धनवती बन्धु-जनः परिजनस्तथा। संक्रान्तभूरितदुःखदूनो दैन्यादऽखिद्यत॥३३॥ तदवस्थमथालोक्य | oral // 51 // नासिक्यो धनमब्रवीत् / भ्रातः किमद्य चिन्तात्तों दृश्यते ? सपरिच्छदः ॥३४॥धनाख्यातेतिवृत्तोऽथ शुको दध्यौ प्रहर्षुलः / दिष्ट्या