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________________ श्रीअमम // 48 // नितस्ततो भीत्या कुलायादाकुलोऽपतत् / नीरन्ध्र जम्बूवृक्षाधः प्ररूढे बदरीवणे // 60 // युग्मम् // पततः कण्टकैरस्य चैकं पुस्फोट- जिनलोचनम् / भग्नश्च चरणस्तेन काणः खञ्जश्च सोऽभवत् // 6 // तिरोभवंश्च कर्कन्धूतलेऽसौ तैरदृश्यत / उत्तीर्य च तरोः कृप्ततुमुलैद्रुत-| चरित्रम् माददे // 62 / / प्रहर्षुलैभयोत्कम्प्रः स हन्तुं चोपचक्रमे / अथ तेषु जरन् कश्चित् तत्पुण्यप्रेरितोऽवदत् // 63 // हतेनाऽनेन किं नाम | पापोदयेन जात्यो यस्मादसौ शुकः / संव_ पत्तनं नीतो लप्स्यते मूल्यमुल्वणम् // 64 // हते त्वस्मिन् तनुर्मासलाभस्तत् रक्ष्यतामयम् / अल्पस्य व्याधहस्ते पतनं काण| हेतवे मुग्धाः किं मुधा हार्यते बहु // 65 // प्रपद्येत्यखिलैनीत्वा स्वपल्लीं वद्धितः स तैः / शिक्षां च ग्राहितः कालाद् व्युत्पन्नः पटुवा | खञ्जभाव गऽभूत् // 36 // प्रागल्भ्यौचित्यचातुर्यवक्तृत्वादिगुणोदधेः / नासिक्य इति नामाऽस्य व्याधवृद्धय॑धीयत // 67 / / नवोद्भिन्नहरित्पि- / भवनं | च्छो भुग्नपाटलनासिकः / सोऽचिराद्यौवनं प्राप्तोऽरमयद् व्याधमानसम् // 68 // अथ तैरेष विक्रेतुं नीतो राजगृहे पुरे। धृतश्च चत्व- | पूर्वगुरु | रेऽत्यर्थं नागरेभ्यश्च रोचितः // 69 // मनोरमोऽपि वामित्वमहिम्ना निरुपाधिना / सपोरेश्चतुरैः काणः खञ्ज इत्यपि नाददे // 7 // दृष्ट्वा | खिन्नभिल्लैस्ततो मध्यंदिने भोक्तुं यियासुभिः / धनाख्यश्रेष्ठिनो हट्टे पञ्जरस्थो व्यमुच्यत // 71 // मध्याह्नत्वात् स्थितस्याऽट्टे धनस्यै जातिस्मरणं कीरस्य E| काकिनस्तदा / दर्शयित्वा शुकं व्याधा भोजनाय स्वयं ययुः // 72 // इतश्च विहरंस्तत्र धर्मसूरिस्तदागमत् / स तु चैत्यानि वन्दि-15 | त्वोद्याने तेनाऽध्वना ययौ // 73 // तं प्राग्भवगुरुं दृष्ट्वा समं संस्तुतसाधुभिः / स जातिस्मरणं प्राप ततश्चैवमचिन्तयत् // 7 // हा|* | धिक् तैरश्यमाप्तोऽस्मि निन्दितं सर्बजातिषु / तत्तादृग् दुष्टचेष्टस्य यद्वा कियदिदं ? मम // 75 / / अदृष्टं दृष्टमित्याख्यं दृष्ट चादृष्टमि त्यहम् / काणोऽस्मि तेन मुक्तश्च स्तोकेनान्धोऽभव न यत् // 76 // दुःशीलोही पुरस्कृत्याऽवन्दयं ब्रह्मचारिणः / तत्खञ्जोऽस्मि न // 48 // | पङ्गुर्यदभूवं तत्तु कौतुकम् // 77 // इहैकमभवच्चारु न मुक्तोऽस्मि श्रुतेन यत् / जीवः ससूत्रः सूचियत् भ्रष्टोऽपि हि न नश्यति // 78 // PARदा / दर्शयित्वा शुकं व्यापाभवगुरुं दृष्ट्वा समं संस्तुतादिद ? मम // 75 // अष्ट तत्वो
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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