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________________ श्रीअमम जिन चरित्रम् पित्राशिथिलतात्यजने // 46 // निम्बकम | दुःखाद् भद्रेश्वराचार्यपाधै विप्रोऽग्रहीद् व्रतम् // 21 // अरुन्तुदः खलः खेटः खिङ्गः क्रूरः कलिप्रियः। सर्वानुद्वेजयामास निम्बकोऽल्पैदिनमुनीन् // 22 // गुरुमेत्यावदस्तेऽथ निम्बकं वावहूकुरु / अस्मान्वा यत्सहेतेन न वयं स्थातुमीष्महे // 23 // ततो निर्वासितो निम्बो गुरुणा दोपवानिति / अनिर्धारित एवैनमाम्रर्पिः स्नेहतोऽन्वगात् // 24 // तत्रैव पुर्यामन्यस्य गुरोस्तौ निकटे स्थितौ / तत्रापि | | निम्बकस्तद्वनिर्धम्मों निरवार्यत // 25 // पिताऽपि निर्गतस्तद्वदित्थं च जनकान्वितः। प्रवेशनिर्गमौ गच्छपञ्चशत्यामसौ व्यधात् // 26 // तत्रासीत्गणभृत्पश्च प्रतिश्रयशती तदा / तस्यां प्रसिद्धि परमां स्वदोषात्प्राप निम्बकः // 27 // आम्रर्षिररुदत्तारं संज्ञाभूमि| गतोऽन्यदा / पृष्टश्च कारण तेन जगाद स गद्गदम् // 28 // स्थानं ममापि खदोषान्न कश्चिद् वत्स! यच्छति / नचोत्प्रवजितुं शक्यं | वाम्यवं तव चैधते // 29 // किं करोमि ? व गच्छामि ? पुत्कुर्वे कस्य वा पुरः। ततः सानुशयः साश्रुः स्वं निन्दन्निम्बकोऽब्रवीत् | // 30 // एककृत्वः क्वचिद्गच्छे प्रवेशं तात ! दापय / किंबहूक्तैस्ततः पश्येर्यत्करोति तवात्मजः // 31 // अथाम्रर्षिः सपुत्रोऽगादीक्षाचार्यान्तिकं मुदा / सुताभिसन्धिमाख्याय गच्छवासमयाचत // 32 // तौ दृष्ट्वा क्षुभितान्साधून् कृपालुगुरुरभ्यधात् / इमावद्याऽतिथी | तावदार्यास्तेनाऽत्र तिष्टताम् // 33 // गुर्वादेशाच्च तैर्दत्ताऽनुमती तत्र तौ स्थितौ / अचिरान्निम्बको भक्त्या वशीचक्रेऽखिलान्मुनीन् | // 34 // आम्रीभूतोऽसि हे निम्ब! चरितेनामुनाऽधुना / इत्युच्यमानः श्रमणैराम्रनाम्ना स पप्रथे // 35 // सर्वैर्निवार्यमाणोऽपि संक्रामन् स गणाद्गणम् / गच्छपञ्चशतीं श्लाघामुखरामाम्रको व्यधात् // 36 // इति श्रुत्वाऽपि संवेगं पस्पर्श न मनागपि / व्यधात् किन्तु कथापंक्तौ कथां तामपि शुद्रकः // 37 // एकस्तु शूद्रकस्यासीनिःसीमाशेमुषीगुणः / उपश्रुत्याऽपि तेनास्य बाहुश्रुत्यमभूत्परम् // 38 // | अक्लेशेन कुशाग्रीयप्रज्ञः कण्ठेऽकरोत्कथाः। न किश्चिद् व्यस्मरचायमपरावर्तयन्नपि // 39 / / सोऽन्यदोवाच तातास्मि साम्प्रतं प्राप्तयो नेः कथा निरूपणेऽपि दुष्टपरिणामाऽत्यजनम् // 46 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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