________________ जिन चरित्रम् राजललितस्योपदेशः तदुपरि शूद्रकमुनि कथाक थनम् श्रीअमम- lam भृगुपातात्करोमि तत् / स्ववधं निधनं येन विदध्यां पूर्वपाप्मनाम् // 44 // एकैकया ततः सर्वास्तिलसेतिकया सुताः। दत्त्वोद्वोढुं द्विजातिभ्यः समं चादाय शूद्रकम् // 85 / / उद्दिश्य दक्षिणामाशां विन्ध्यं चाभ्रलिहं गिरिम् / पुत्रीमूल्यतिलैः क्लुप्तपाथेयः प्रस्थितो | // 44 // द्विजः // 86 // युग्मम् / स गच्छन्नन्तरा राजपुरोपान्ते पथः क्रमात् / छायाहारिणि विश्राम्यनिषण्णः शाखिनस्तले // 87 // नगराबन्दनोद्यानं गच्छन्तं सपरिच्छदम् / अहं प्रथमिकाव्यग्रं पौरवर्गमुदैवत // 88 // युग्मम् // तेनाऽथ पृष्टः कोऽप्याख्यदिहोद्यानेऽस्ति सद्गुरुः / श्रीधर्मघोषसूर्याख्यः प्रख्यस्तीर्थकृतां गुणैः // 89 // वीक्ष्यैव यं सदा ब्रह्माराधकं निःपरिग्रहम् / भेजुः सप्तर्षयो व्योम ते | परिग्रहलजया // 90 // गुणरत्नैर्गतत्रासैर्यस्य रत्नगिरिजितः / सेहे तेन क्षतिं शङ्के क्षुद्रनिःशंकटङ्कतः // 91 // तं चतुर्जानिनं भक्त्या | याति नन्तुमियान् जनः / धर्म च व्यस्तसन्देहसन्दोहः प्रतिपत्स्यते // 92 // चक०॥ कौतुकात्सोऽप्यगात्तत्र शुश्राव च तटे | स्थितः / दुःखाग्निशान्तिपाथोदवृष्टिं सद्देशनां गुरोः // 93 // तदन्ते चोपसृत्याऽसौ निषण्णोऽभाणि सूरिणा / कोऽसि वक्त्रप्रसादाद्यैः भृण्वन् भव्य इवेक्ष्यसे // 94 // अथाऽऽख्यातनिजाकूतं तं गुरुः कृपयाऽन्वशात् / आत्महत्या महाभाग ! महापापाय कल्पते // 15 // किं ब्रूमो बत नीरन्ध्रदुःखसन्दोहहेतवे / कुप्यन्ति कर्मणे मूढास्तत्कर्ते नात्मने पुनः॥९६॥ व्ययः शरीरमात्रस्य भृगुपातेन सिध्यति / अक्षतानि तु कर्माणि सह यान्ति शरीरिणाम् // 97 // इहैव तान्यमुत्राऽपि दुःखं यच्छन्ति का स्खलेत् / तत्कर्मक्षपणोपायश्चिन्त्यता कोऽपि किं परैः ? // 98 // स त्वर्हद्धर्म एवैको वपुस्तस्य च साधनम् / मोक्तुमुत्कण्ठसे यत्तु त्वत्तोऽन्यस्तन्न बालिशः // 19 // मनुष्यत्वादिसामग्री पुनरेषा सुदुर्लभा / तदस्याः फलमादत्स्व वत्स ! व्रतपरिग्रहात् // 300 // विमृश्य ज्वलनोवादीत् साध्वात्थ | भगवन्निदम् / दीक्षां प्रपत्स्ये किन्त्वस्य तनयस्याऽस्तु का गतिः // 1 // यद्वा प्रबजया पूज्यैरयमप्यनुगृह्यताम् / प्रपद्येति गुरुः | // 44 //