________________ श्रीअमम जिनचरित्रम् वैराग्याद् // 42 // सुधामिव // 46 // योजिताञ्जलयस्तेऽथ सूरि व्यज्ञपयन्निति / वयं भदन्त ! भीताः स्मः संसाराद् भैरवादतः // 47 // रक्षादक्षां ततो | दीक्षां ब्रह्मास्त्रमिव देहिनः / येनाऽयं प्रत्युताऽस्मत्तो ध्वस्तशक्तिः पलायते // 48 // युग्मम् // गुरुस्तेषामदाद्दीक्षा समीक्षा साम्यप द्धतेः / ततो विजहरन्यत्र तेन सार्द्ध त्रयोऽपि ते // 49 / / जात्याश्वा इव ते शिक्षा दक्षाः स्वीचक्रिरे द्विधा / क्रमेण प्रायमास्थाय | ललितांगो दिवं ययौ // 50 // भ्रातरौ तु नवब्रह्माऽच्युताचारौ बभवतुः / एकादशांग्याः सिद्धान्तस्येश्वरस्येव पारगौ // 51 // तेपाते | ललितांग राजललित| राजललितगंगदत्तमुनी ततः / वर्षकोटीबहू रत्नावल्याचं दुस्तप तपः // 52 // क्रमाद् द्वादशवर्षाणि कृत्वा संलेखनातपः। अगृह्णीता गङ्गदत्तैः | मनशनं विधिना तौ महामुनी // 53 // निर्यामकैः सावधानस्तयोः शुश्रूष्यमाणयोः / ययुदिनाः कियन्तोऽपि सद्ध्यानामृतप्तयोः दीक्षाङ्गी| // 54 // अन्येधुगंगदत्तस्य स्वान्ते शमसुखार्गला / दुःकर्मनिर्मिता विश्रोतसिकेयं हठादऽभूत् // 55 // धिग्दौर्भाग्यनिधेर्जन्म व्यर्थ कृता कथमगान्मम / का कथाऽन्यजनस्याऽऽसं यद्वेष्यो मातुरप्यहम् // 56 // मात्रा कोकिलवश्यक्तो जातोऽन्यः पोषितोऽस्म्यहम् / स्वजनालालनसुखं स्वप्मेऽप्यनुबभूव न // 57 / / अवदचार्य ललित ! दौस्थ्यं मे बालकालजम् / रोमोद्वर्षकरं भ्रातः क्वचित्स्मरसि दुःस|हम् // 58 // तमूचे राजललितो दुर्ध्यानाद् विरमाऽमुतः / सागरं गन्तुकामः को मेरोरभिमुखं व्रजेत् // 59 / / व्यालोंऽकुशमिव भ्रातु-18 र्वचस्तदऽपकर्ण्य सः / अनार्यो कार्यमीक्षं निदानं विदधे महत् // 60 // फलं मया कृतस्यास्य तपसो महतोऽस्ति चेत् / सुभगानां शिरोरत्नं तेन स्यामन्यजन्मनि // 61 / / ज्येष्ठस्तमन्वशादेवं नाऽध्वाऽयं साधुसेवितः / प्रस्थितोऽसि मुने ! येन हन्त्येष पुरतो हठात् | // 62 // कोट्याऽद्य काकिणी क्रीतारघट्टः पूपयाऽपि च / विक्रीतो वाञ्छता भोगांस्तपोभिर्मुक्तिदैस्त्वया // 63 / / यच्चूर्णमूलिकाना- // 42 // | वमन्त्रमात्रप्रभावतः / लभ्यं सौभाग्यमैषीस्त्वं महाातपसोऽमुतः // 64 // तेन मुर्खेषु मुख्यत्वं स्वस्याख्यः शमिनां पुरः / कृषेमृग