________________ // 35 // मप्यद्यापीक्षे साक्षादिवाऽग्रगम् / विश्वं च तन्मयं सर्वमपि तल्लीनमानसा // 15 // किं बघुक्तैः सतां स्वमेष्वनास्थासु तथापि मे। शरण तरुणः सैप बहिर्वा नापरो नरः॥१६॥ अहं त्वाख्यं गजपुरश्रेष्ठी काश्यपगोत्रजः। श्रीपुञ्जमूललिताङ्गः स ते स्वमेन सूचितः | // 17 // तत्तत्राप्तं नरं प्रेष्य कुचे स्वमार्थनिश्चयम् / तया साध्वित्यनुमते तथैवाकार्षमुत्सुका // 18 // प्रत्यागत्य नरेणाऽपि संवादि प्रत्यपादि तत् / श्रुत्वा च मत्सखी पीतामृतेव सुखिताऽभवत् // 19 // बद्धवा तत्प्रभृति स्वमेष्वास्थां नियमितेन्द्रिया। नरानऽरीनिवाऽ- The | मंस्ताऽपरान् सुचरितेव सा // 20 // प्रत्याख्यानभयान्मातृपारवश्याच नाशकत् / तं स्वमदृष्टं श्रयितुं मानस्थानं हि योषितः // 21 // कमलश्रीस्ततो ज्ञप्ता मया सर्व तयाऽप्यसौ / बहुधा बोधिताऽत्याक्षीदेणाक्षी खाग्रहं नतु // 22 // कोपानिर्वासिता मात्राऽचालीद् | गजपुरं प्रति / मयाऽनुयाता स्नेहेन यावदत्र समागमत् // 23 // तावद्गजपुरे कन्यां ललितो व्यूढवानिति / साऽकस्मादशृणोत्तस्मा| दप्यागतान्नरात् / / 24 // युग्मम् // ततोऽत्रैव स्थिता दोलायितस्वान्ता निरुद्यमा। किंकृत्यमूढबुद्धिश्च दिनानिगमयत्यसौ // 25 // | नवोद्यौवनाऽप्येषाऽद्यापि वेश्यास्वसम्भवि / बहुप्रवय॑मानाऽपि धत्ते कौमारमुज्वलम् // 26 / / जगाद गङ्गः श्रुत्वेति दिल्या गजपु रादिह / ललिताङ्गः स एवागाईवादऽस्यां च रागवान् // 27 // इहैत्य यदनाश्वासात् स्थिता सुमुखि ? ते सखी। साऽमुना गच्छता क्षिप्ता कुतोऽप्यन्धौ नवा प्रिया // 28 // एहि खं स्वं विभुजनं तदातं कथयाऽनया / सुखयावः सुधावृष्ट्येवाऽशु पुण्योपनीतया // 29 // श्रुत्वेति गंगस्तत्सर्वं श्रेष्ठिनोऽकथयत् स च / हर्षप्रकर्षमाविभ्रद् दम्भवेश्यागृहं ययौ // 30 // ईपद्दृष्टस्तया पूर्वमसम्भाव्यागम| स्वतः / रागान्धेन च तत्रैषा तेनोपालक्षि नाऽद्भुतम् // 31 // तथाऽद्य संगमेऽप्येष कलाकुशलया तया / वशीकृतो यथाऽन्याः स्त्रीः स्वम्मेऽपि चकमे नहि // 32 // वित्तेनाते महासौधे नीतया स तया समम् / भुञ्जानो विषयानिन्ये सुखेन समयं बहु // 33 // स्पर्द्धयेव | // 35 //