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________________ // 33 // * स्या भोक्तुं कोद्रवसेतिकाम् / रज्जुबद्धमश्चिकोपढौकिता प्रतिवासरम् / / 78 / / इत्युक्त्वा तां स कसभारेण सहितां तदा / कूपे निक्षिप्य मेने व वैरं निर्यातितं हृदि // 79 // त्रि० वि०॥ अथापृच्छय नृपं पोरान् बन्धून् पुरजनानपि / आरोप्य प्रतिहस्तेषु पुर| भारमुदारधीः // 8 // मित्रं गंगाख्यमादाय सहाऽन्यं च परिच्छदम् / अगण्यं पण्यसम्भारं चौक्षकौष्ट्रकपृष्ठगम् / / 81 // ललिताङ्गोऽचलद् वाणारसी प्रति दिने शुभे / युतः श्रिया कुबेरानुकारिभिर्व्यवहारिभिः // 82 // त्रि० वि०॥ इतो बालबुधाऽप्याशु गत्वा सम सुरंगया। उवाच चन्दनं चेट्या कप्पोस कत्तयेः पितः॥८३।। प्रत्यहं ग्राहयेराप्तेनापि कोद्रवसेतिकाम् / काश्यां यास्याम्यहं त्वये श्रेष्ठिनः स्वेष्टसिद्धये // 84 // युग्मम् // तेनाप्यनुमता दत्तद्रव्या चतुरिकाभिधाम् / चेटीं दक्षां सहादाय जवनले घुवाहनेः॥८५॥ काश्यां गत्वा पथाऽन्येन गणिकापाटकेऽग्रहीत् / सा सौध कसिपूशीराद्यपि सर्व धनव्ययात // 86 // युग्मम् // वासस्थानं तया स्वस्य तत्र पुष्पपुरं जने / त्रैलोक्यसुन्दरीत्याख्या चाविश्चक्रे मनोहरा / / 87 // तरुणास्तामभिसम्भ्रमराः केतकीमिव / कोटीशानपि किन्त्वेषा नेक्षते स्म दृशापि तान् / / 88 // पुंद्वेषिणीति सा तस्यां प्रसिद्धिमगमत्पुरि / तस्थौ पत्यागमोदन्तान्वेषणावहिताऽनिशम् // 89 // अन्यदा ललितोपेत्यावासयनगरीवहिः / नृपं द्रष्टुमचालीच सोपदाकरकिंकरः // 9 // सापि विज्ञाय तच्छुद्धिं कृत्वा शृंगारमुद्भटम् / शिरोगृहगवाक्षेऽस्थाद् विमान इव नाकिनी // 91 // गच्छंस्तेन पथा श्रेष्ठ्यप्यपश्यत्तां तथास्थिताम् / विद्धश्च पश्चबाणेन रूपाधिक्यरुषेव सः॥१२॥ न मायावेश्यया दृष्ट्वाऽप्यसौ दृष्ट्यापि वीक्षितः। अमुना विमनाः काममगमद्राजमन्दिरम् // 93 // नृपं दृष्ट्वा स वलितस्तत्कृतोद्दामगौरवः / तथैवैक्षत पद्माक्षीं तां च नेत्रसुधाच्छटाम् // 14 // इयं त्रैलोक्यगाणिक्यमौलिमाणिक्यमंगना / सरस्य हरदग्धस्य शंके संजीवनौषधिः // 95 // ध्यायन्निति निजावासं गतः कामा // 33 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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