________________ // 19 // वमाख्यत / श्रेष्ठी हृद्यकरोदस्मिन् पक्षपातो विधेर्महान् // 29 // अरे मामिति वञ्चित्वा रक्षित्वेवं रिपुं मम / विश्वासघातिन् क्वेदानी दुःशौनिक ! गमिष्यसि // 30 // आस्तां तावत्करिष्यामि सुस्त्रं सर्वमप्यदः / अथोवाच हहा वत्स! शौनिकस्य विचेष्टितम् // 31 // मुक्तोसि जीवनः पुण्यैः किमकृत्यं हि तादृशाम् / मयि मा च कृथाः शंका को हेतुस्त्वद्वधे मम // 32 // गोमिनोऽप्यचिवान् साधु भोः स्वपार्श्वेऽसकौ धृतः / गृहान्तरं हि मे गोष्ठमयं च तनयान्तरम् // 33 // इति दामन्दकं श्रेष्ठी सरलं कुटिलाशयः / हन्तुं विश्वासयामास तिमि बक इव स्थिरः॥३४॥ क्षणादावासमागत्य विसृष्टव्रजपूरुषः / तप्तमह्यामहिरिव शय्यायां पर्यवर्तत // 35 // भ्रकुटीमपटी विभ्रत् प्रज्वलत्कोपदीपकम् / रात्रौ विवेश तद्देहं वासगेहमिवारतिः // 36 // काकेनोल्मुकवद् धात्राऽन्यत्रानीतोप्ययं भयम् / | करोति तद् बुद्धिजलवृष्ट्या विध्यापयाम्यमुम् // 37 // का च सा बुद्धिरित्येवं विमृशन् सुचिरं स्थितः / पाश्चात्ये प्रहरे रात्रेः प्रापोपायं | स कूटधीः // 38 // अथाकार्य सविश्रम्भं माणिभद्रिमवोचत। त्वमन्तरङ्गकार्येषु धीर! धुर्योऽसि नः सदा // 39 // विलम्बस्याक्षम कार्य | गुप्तं चेति त्वमुच्यसे / पार्श्वे सागरदत्तस्य याहि राजगृहेऽधुना // 40 // यदादिशति मां तातपादा इत्यादिवादिनः / श्रेष्ठी लेख लिखिस्वास्याऽर्पयन् वाचिकमभ्यधात् // 41 // वत्स ! गच्छ द्रुतं तत्र लेखकार्याणि कारय / संदृश्यमानमन्येन लेखं रक्षेश्च यत्नतः॥४२॥ श्रेष्ठिनः शासनं मृ| लेख वस्त्राश्चलेन च। धनुर्दधानः स्कन्धेन चचाल स पुरं प्रति // 43 / / स्फुरता दक्षिणेनाक्ष्णा कपोलेन भुजेन | च / शकुनैरनुकूलैश्च प्राप राजगृहं क्रमात् // 44 // श्रान्तोऽविशत्परिसरोद्यानं नाम्ना मनोरमम् / दुरात्तदन्तःपञ्चेषोः प्रांशुं प्रासादमैक्षत // 45 // वहच्छोणध्वजश्रेणी रागान्धेर्लहरीरिख / पद्मरागोपलमयं कामधाम जगाम तत् // 46 // तस्यैकदेशे प्राप्यकं विशालं मत्तवारणम् / सुखं स खिन्नः सुष्वाप पवनाप्यायितः क्षणात् / / 47 // इतः समुद्रदत्तस्य पुत्री तत्रागमद् विषा / साऽन्वहं यत्करोति // 19 //