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________________ // 17 // न्दकः प्रोचे / ममालिसा बदयिष्या पुरापि पापानिर्बलन् जीववधेन्धनैः / अस्य हत्याघृताहुत्या वर्द्धयिष्याम्यमुं न तत् // 90 // अथ दामन्दकेनैत्याभियुक्तो लभ्यवस्तुनि। शूनापतिस्तमेकान्ते नीत्वा मन्दमवोचत / / 91 // ममाऽस्ति श्रेष्ठिना सार्द्ध लभ्यं देयं न किञ्चन / किन्तूपांशु वधं कर्तुं नियुक्तोऽस्मि कुतोऽपि च // 92 // हृष्टो दामन्दकः प्रोचे प्राणास्तातवशा मम / तावदेव शुनः कर्णी यावत् खामी तितिक्षते // 93 / / आयत्तस्त्वहमप्येष मद्वपुस्तव कर्त्तनी / मां हत्वा कुरु ताताज्ञां तत्कारी हि प्रियो मम / / 95 / / दध्यौ शूनाधिपश्चेत्थमहो साहसमद्भतम् / अहो | कुलीनता काचिदुक्तेरहह रम्यता // 96 / / ऊचे विवहतो हन्तुं न हस्तौ स्तम्भिताविव / त्वां कृपाणी कृपाट्टैच न धौतापि जिघांसति | | // 97 // त्वां प्रति श्रेष्टिनो जिह्वा मारयेत्यभ्यधात्कथम् ? / न ते मन्तुरपीदृक्षः स्याद् यः कल्पेत मृत्यवे // 98 // अवतंसं विनीतानां साचिकानां निदर्शनम् / नतस्वां मे भवेन्नूनं न स्थानं नरकेष्वपि // 19 // तद् वत्स! यत्र न श्रेष्ठी वेत्ति तत्र क्वचिद् व्रज / यजीवति त्वयि ज्ञाते नावयोः कुशलं क्वचित् // 300 // किन्त्वेकामङ्गुली देहि श्रेष्ठिप्रत्ययहेतवे। इत्यस्य सकपोऽप्यन्त्यां कृपाण्याऽङ्गुलिमच्छिनत् // 1 // वत्सलः पश्चिमद्वाराऽपवाह्य विससर्ज तम् / श्रेष्ठिनस्तां दर्शयित्वाऽङ्गुलिं वेतनमग्रहीत् / / 2 / / हृष्टः श्रेष्ठी वधाच्छनोरथ दामन्दकस्ततः / यूथभ्रष्ट इव मृगो मुग्धोऽभ्राम्यदितस्ततः // 3 // पुनस्तत्रैव तत्रैव यातायातान्ययं दधत् / चाक्रिको वृषभ इव विचचार चिरं वने // 4 // अथान्धवत्तिकीयात् स सम्प्राप श्रेष्ठिगोकुलम् / उपान्तखेलद्गोपालीगीतानीतमृगाकुलम् // 5 // रुग्ण मन्थाद्रिणा | * ऽऽच्छिन्नसर्वस्वं च सुरासुरैः / दुग्धाब्धिमिव वैराग्यावनवासमुपागतम् // 6 // युग्मम् / अथ राजगृहे दृष्टचरो दृष्ट्वोपलक्षितः / गोष्ठलोकैः | श्रेष्ठिगृह्य इति सन्मानितश्च सः // 7 // दुग्धाधर्भोजितोऽत्रैव तिष्टेति स्थापितस्ततः / भ्रान्खा स्वग्गं गतोऽस्मीति मुदं दामन्दको वहन् // 8 // We अप्राप्त स्वेच्छया बाल्ये दुग्धं मातृविपत्तितः। पिवन् पुनः पुनः पीनोऽभवत्कतिपयैदिनैः // 9 // अध्यास्त यौवनं गोपीजनेन चामृ. // 17 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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