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________________ श्रीअमम जिन // 264 // चरित्रम् रक्षितदन्दशूकेन दष्टे नले शरीरस्यकुरूपता * पटीं स्वां पटीयान्नलोऽक्षिपत् // 82 // अवेष्टयत्पटीं सर्पस्ता चलामचलाश्रयाम् / स्वांगेन स्वर्णकृद् रूप्यवालकेनोमिकामिव // 8 // | तेनाक्रान्तां पटीं भारात् ज्ञात्वा राजा कृपाकुलः। ततोऽकर्षद् रज्जुमिव काष्ठाग्राजलयंत्रजात् // 84 // वन्हेरगोचरे गत्वोपरे तं मोक्तुमुद्यतम् / करेऽदशद्दन्दशकः क शूकस्तादृशां हृदि // 85 // हस्तमाच्छोट्य तं पृथ्व्यां पातयित्वा बलान्नलः / ऊचे द्विजिह्वता स्वस्थ | साधु प्रकटिता त्वया // 86 // श्रुता स्वमेपि नो वार्ता यस्यास्वादकथैव का। पीयूषस्यास्य दातापि त्वज्जात्या दश्यते हहा // 87 // | वैरी कोऽपि सुरीभृतः सर्परूपं विधाय माम् / विश्वास्या पाकरोन्नूनं प्रेक्ष्यैवं दुर्दशागतम् // 88|| ध्यात्वेति भूपतिः प्रोचे रे त्वां | दृक्कर्ण! चूर्णये / अर्गला जिनराजस्य मम न स्यात्कृपा यदि // 89 // सर्पोऽवदत् प्रियात्यागादेव ज्ञाता कृपा तव / तत्कि? त्वं लजसे नैव स्वयं तामसती अवन् // 90 // या दृक् विपत्सहायिन्या देव्याश्चक्रे त्वयाऽधम / उपकारो मया ताग दवाकृष्टेन ते कृतः ॥९१॥अत्युग्रस्य प्रियात्यागपापद्रोस्तत्क्षणादिदम् / अदर्शि कुसुमं कीदृक् ? फलं हा द्रक्ष्यते मया // 92 / / इत्यन्तश्चिन्तयन्नेव नलोऽङ्गेषु प्रसर्पता / विषेण कुब्जतां निन्ये योधिनाऽधिज्यधन्ववत् // 93 // युग्मम् // सर्वांगपिंगः कपिवद् घूकास्यश्चाखुकर्णकः। फालदन्तः। करभौष्टकण्ठो मार्जारलोचनः // 94 // अलिञ्जरोदरो दारुहस्तपाणिगजाहिकः / स विषेणातिबीभत्सरूपोऽभत नटवरक्षणात // 5 // युग्मम // निरूप्य स्वांगवैरूप्यं स दध्यौ तदिदं मया / लेमे फलमपि स्वोप्तपापद्रोः सद्य एव धिक् / / 16 / / द्यूताद्विनाशं राज्यस्य प्रियात्यागात्तनोरपि / अवाप्य जीवताद्यापि ही मयात्मा विगोप्यते / / 97 // येनेदं कारितो कत्यद्वयं किं तेन सम्प्रति करिये कर्मराजेनेत्यतो मे कम्पते मनः // 98 // अथवा कम्मेराजस्याहसस्तत्कारितस्य च / वरूपस्यापि संहारदक्षा दीक्षां श्रयेऽधना // 19 // bell इति ध्यायत एवास्य स भोगी भोगितां जवात् / तद्वैराग्यादिवोज्झित्वा दिव्यां देवश्रियं दधौ // 1100 // पं० कु०॥स चोवाच सर्ग-६ // 26 4 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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