________________ // 26 // सहोद्भवः // 25 / / इत्यसौ पाणिना निष्ठीवनाणा मानसा / आजिघ्रती मुहुमौलौ मैमी भालममीमृजत् // 26 // ततोऽतिनिर्मले भाले|ऽनने व्योम्नीव भानुमान् / शीलज्योतिरिर्वतस्यास्तिलको दियुतेतराम् // 27 // अथ तां सौधमानीय देवी संस्नप्य च स्वयम् / परि-* ऋतुपर्णेन धाप्य नवे ज्योत्स्नायते इव सितांशुके // 28 // मूर्ती पुण्यश्रियमिवानन्दश्रियमिवात्मनः / गृहीत्वा पाणिना प्रीता निनाय मापतेः भैमीतिसभाम् // 29 // कृतप्रणामा श्रीभीमपुत्री पित्रेव तेन सा / पृष्टा मातृष्वसुः क्रोडे स्थिता स्वं वृत्तमाख्यत // 30 // नलस्य निजवंश्यस्य लकपरीक्षा कृता पिङ्गकथ्यमानेऽथ तादृशे / वृत्तान्ते लजयेवाऽकस्तदाब्धौ पश्चिमेऽपतत् // 31 // कजलश्याममहसा तमसा पूरितं क्षणात / विश्वश्रीकजल लदेवेनागगृहस्थाऽभवत्सन्निभं नमः // 32 // जगल्लुण्टाकमप्यागात् तत्तमःस्तोमसौप्तिकम् / न तां राजसभा जाग्रभैमीतिलकताडितम // 33 // त्य च सप्तराजाऽवदत देवि ! सूर्येऽस्तंगते दीपिकां विना / कुतोत्र चित्रमुद्योताद्वैतमहीव जम्भते // 34 // राज्यप्ययतसंसिद्धं भैम्यास्तं तिलक कोटी वृष्टि| तदा / राज्ञः प्रादर्शयज्ज्योतिःप्रयोतितसभागृहम् // 35 // नृपः सकौतुकस्तस्या भालं प्यधित पाणिना / तद्वेषिभिरिवास्फोरि ध्वा- स्कृता तैश्छलबलोत्कटैः॥३६।। हस्तेऽपनीते राज्ञाऽथ तद्भम्यास्तिलकांशुभिः। हेलया धावितैर्धान्तं ध्वान्तसैन्यं न्यगृह्यत // 37 // राजा-1* ऽब्रवीदहो चित्रं यद्भावति विशेषके / वत्सायाः पार्श्वगेऽप्येष मुखेन्दुः पार्वणेन्दुजित् // 38 // भैमी दुःप्रतिकारात्मदुःखभारादधो-16 मुखीम् / कृबोन्मुखी स्वयं राजाऽऽरोप्यांके तातवत्तदा // 39 // जगाद वत्से! किंवत्से न्यग्मुखं स्खं मुखं यतः / व्यसने रणवत् स्वामी त्वयाऽमुच्यत न क्षणम् // 40 // तुरंगेणेव बलिना विधिना तेऽनुदगः / कृतोऽस्ति तं सद्दशया व्यावय॑ कशयेव सः॥४१॥न चिराद्भवतीं संभावयिता विजयोदयी / तन्मुश्च खेदं धीराणां ह्यापत् सत्वमहाकपः // 42 // युग्मम् // कश्चिदेत्य क्षणे तत्र कान्तिभि ॐ // 26 // र्भासुरः सुरः। भैमी मध्येसमं नत्वा प्रोचे बन्धुरकन्धरः // 43 // तस्करः पिंगलो बद्धो यस्त्वयोन्मोच्य संयमम् / ग्राहितो विरहनेष /