________________ जिन श्रीअमम // 260 // चरित्रम् उपलक्ष्य चन्द्रयशसाऽऽनीता स्वभुवने भैमी तामन्वरोदि राज्ञा च राजलोकै नैरपि / तथा यथा रसतया शोको भावो व्यापप्यत // 7 // हर्षवार्ताखनध्यायी तत्र मूच्छितवत्पुरे / / आबालवृद्धं सर्वोऽपि जनः सर्वत्र जज्ञिवान् // 8 // बुभुक्षया क्षामकुक्षिरुत्थाय स बटुस्ततः बहिर्ययौ दानशाला भोक्तुं च समुपाविशत् // 9 // दवदन्तीं तत्र दानोद्यतां वीक्ष्योपलक्ष्य च / स ववन्दे प्रमोदेन विषादेन च साश्रुदृक् // 10 // भैमीदृष्टिसुधावृष्टिसृष्टिप्रीतः स तत्क्षणात् / मुक्तः क्षुधाक्लमेनान्तर्बहिर्मार्गश्रमेण च // 11 // स तामूचे कथं ? देवि! दुस्थावस्थाऽभवत्तव / कृशाऽपि चन्द्रलेखेव | दिष्ट्या दृष्ट्यासि वीक्षिता // 12 // देवि! त्वं ग्रीष्मवद् भीष्मे विपत्कष्टेऽपि यन्मया / औषधीवाऽसि जीवन्ती प्राप्ता तजीवितं जगत // 13 // स गत्वाऽथ द्रुतं चन्द्रयशोदेवीमवर्द्धयत् / इहैव दानशालायामस्ति भैमीति घोषयन् // 14 // श्रुखा चन्द्रयशाः प्रीता कर्णामतमिदं वचः / तं स्वर्णजिह्वया रत्नालंकाररप्यतोषयत् // 15 // सा प्रमोदोत्सवमयं स्वयं तन्वत्यथो पुरम् / पद्भ्यां परिजनैः सार्द्ध दानशाला मुदा ययौ // 16 // भुजोपपीडं साश्लिष्टा निन्दन्ती स्वमुवाच ताम् / धिग् मां नाज्ञासिषं यत्त्वा लक्षितामपि लक्षणैः // 17 // किमवञ्चयथाः पुत्रि! मां त्वमप्यात्मगोपनात् / यन्मातुरधिका मातृष्वसेति प्रोच्यते जनैः // 18 // का लज्जा दर्दशायां च वत्से ! स्वस्य प्रकाशने / नायान्ति नैयुनॆष्यन्ति दुर्दशाः कस्य वा भवे // 19 // वत्से ! तुच्छेन भ; त्वं त्यक्तासि नत स त्वया / मेघः सौदामिनीमुझेन्मेषं सौदामिनी नतु // 20 // त्वादृशोऽपि हि सत्यश्चेद् दुर्दशापतितं पतिम् / त्यजेयुस्तद्विपर्यासो द्यावाभम्योर्भवेद ध्रुवम् // 21 // नलः प्रियामिमां प्राणसमामपि यदऽत्यजत् / तत्प्रागदुःकर्मणैवास्य मन्ये निन्ये विपर्ययम् // 22 // वलीक्रियेय ते दुःखं गृण्हे मृत्वा व्रजामि च / दैन्यं विमुश्च वत्से मा रोदीः खस्त्यस्त्वतः परम् // 23 // मातृष्वसाऽप्यहं ज्ञाता नेति मा खिद्यथा वृथा / सकृदृष्टासि यदबाल्ये नेटक्कष्टघटा च ते॥२४॥क वा स तिलकस्तेजोव्यस्ताहस्तिलकस्तव / दोपान्धकारसंहारी बाले भाले // 26 //