________________ श्रीअमम जिन // 256 // चरित्रम् अचलपुरे चन्द्रयशाः दासीभिः दृष्टा | // 32 // आख्यत्त्वं दिवश्युत्वा मिथिलायां महानृपः / श्रीमान् प्रसन्नचंद्राख्यो भूत्वा वैराग्यवान् हृदि // 33 / / एकोनविंशतीर्थेशश्री* मल्ले प्राप्य दर्शनम् / उत्पाद्य केवलज्ञानं निवृतिं समवाप्स्यसि // 34 // युग्मम् / / पटे न्यस्य दृढा भक्तिः श्रीमल्लेस्तत्प्रभृत्यहम् / मूर्तिमभ्यर्चये धर्मशीले ! स्वस्योपकारिणः // 35 // निवेद्येति स्ववृत्तांतमपृच्छच्छ्रावकोऽपि ताम् / भद्रे मां धर्मबंधुं चेन्मन्यसे काs | सि ? शंस तत् // 36 // सार्थेशः कथयामास भैम्यावृत्तांतमादितः। तस्याग्रे सासदृक् सर्व तयैव प्राक् निवेदितम् // 37 // भैम्या दुःखोदधिं नेत्रैः स्वैर्बाष्पाम्भोभृतैर्मुहुः / उदंचनैरिवोदंचन्नुवाच श्रावकोऽप्यदः // 38 // विवेकिनि ! शुचं मुश्च जानती त्वं भव| स्थितिम् / तातोऽयं सार्थवाहस्ते भ्राताऽहं तिष्ठ तत्सुखम् // 39 // प्रगे ऽचलपुरं प्राप्तो धनदेवोऽपि भीमजाम् / तत्र मुक्त्वा ययावात्मवासस्थानं स्वयं पुनः // 40 // साऽविशत्तदहिर्वाप्यां पयःपातुं जलांतगा। गोधया जग्रसे वामे पादे धिकर्मवल्गितम् // 41 // मालाघटीवद्वद्धानि विनोदीरणयाऽप्यहो / उपर्युपरि दुःखानि मैत्र्येवायान्ति देहिनाम् // 42 // पूर्वसारं नमस्कार मंत्रवत् त्रिः पपाठ सा। मुक्तोंहि गोधयांगीव संसृत्या तस्य वैभवात् // 43 // मुखांहिपाणि प्रक्षाल्य पीत्वा तुवारि वारि च / सा साक्षाजलदेवीव वापीमध्याद् विनिर्ययौ // 44 // श्रीचंद्रयशसो देव्या ऋतुपर्णस्य भूपतेः। तत्रेयुरिहारिण्यश्चेव्यो नर्मकृतो मिथः॥४५॥ विपद्यपि खसौन्दर्यापास्तवास्तोष्पतिप्रियाम् / वापीकंठे कंबुकंठी स्थितां तास्तां व्यलोकयन् // 46 // चेतांसि कौतुकरसैः कुंभान् वापीरसैरिव / भृशमापूर्य किंकर्यो वलद्धीवं ययुर्गृहान् // 47 // ताभिर्भीमसुतारूपाद्भुता गत्वा निवेदिता / राज्य साऽपि प्रमोदेनाजूहवत्ताभिरेव ताम् // 48 // ताश्चाशिषचन्द्रयशाः सा वाच्यैवं गिरा मम / राजपुत्र्याश्चन्द्रवत्या भवती भविता वसा // 49 // पुरदेवीमिव पुराभिमुखी सुमुखीं च ताम् / प्रीत्या वापीतटे चेटघस्तूणं गत्वैवमूचिरे // 50 // राज्ञः श्रीऋतुपर्णस्यैतत्पुरस्वामिनः प्रिया / सर्ग-६ 256 //