________________ // 257 // त्वामाह्वयति हर्षेण देवी चंद्रयशाः खयम् // 51 // पुत्री चंद्रवतीवस्त्वं ममासीत्यादिशच्च सा। तदेहि देहि दुःखेभ्यः कल्याणि! | सलिलाञ्जलिम् // 52 // शून्यखान्ता स्थिता त्वत्र भूताद्यैरुपलोलुपैः। छलं प्राप्याधिष्ठिता त्वमन्यथाऽनर्थमाप्स्यसि // 53 / / राज- चन्दयशा पत्न्या धर्मपुत्री प्रपन्नाऽस्मीति तोषभाक् / भैमी ताभिविनीताभिः समं नृपगृहं ययौ // 54 // स्वसा चंद्रयशाराज्ञी भैम्या मातुः। | गृहे गत्वा | सहोदरा। मम मातृष्वसैवेयमित्यज्ञासीन भीमजा // 55 // राज्ञी चंद्रयशास्त्वस्ति दवदंतीति जामिनः / विवेद दृष्टां चाल्ये तु नोपलक्षयति स्म ताम् // 56 // स्वसुतामिव तां दूरादृशा प्रेमामृतस्पृशा / आलिलिंग चंद्रयशाः प्रथमं चरमं हृदा // 57 / / भैम्या दानदापहृदोऽग्रमहिषीनिविडाश्लेषताडितात् / सार्द्ध श्रमांगसादाभ्यां दुःखं सर्व व्यलीयत // 58 // ववंदे मातृवद्राज्ञी भीमजाऽपि विलो नाय स्थिता चनैः। वर्षन्त्यथणि तत्प्रीतिलतां सेक्तुमिवोद्यता // 59 / / पृष्टाऽथ चंद्रयशसा भैमी भीमा निजां कथाम / सार्थनाथाग्रकथितां कथयामास साश्रक // 60 // ऊचे चंद्रयशाः पुत्री यथा चन्द्रवती मम / तथा त्वमपि मे वत्स सुखमास्स्व गृहेऽत्र तत // 6 // देवी el चंद्रयशाचंद्रवतीं स्माहान्यदाऽऽस्मजाम् / भीमजां भागिनेयीं मे स्वसा तेऽनुकरोत्यसौ // 62 // आस्माकीनस्य नाथस्य महिषी श्री-IIT जलस्य सा। दर्दशी दर्दशां प्राप्ता घटेततादृशीं कथम् // 63 // चतुश्चत्वारिंशदग्रे योजनानां शते तथा / तस्याः स्थितायाः संभाव्य मेवमागमनं कुतः 1 // 64 // ज्ञात्वा चंद्रयशोदानशाला भैमी पुराद्धहिः / तद्दातृतां ताममार्गदर्थिवेषपतीप्सया // 65 // दानं ददाना दीनेभ्यस्तत्रादिष्टा तयाऽथ सा। सेहे महाशया कांताशया दुःखं सुदुःसहम् // 66 // इदृग्भिः श्रीवयोरुपैः प्रैक्षि | * कोऽपि नरः किमु / भवद्भिरिति पप्रच्छ सार्थिनस्तत्र चान्वहम् // 67 // साऽन्येचुर्दानशालायां स्थितैकं तस्करं पुरः / बद्धाऽऽक्ष // 257 // वंध्यभूमि नीयमानमुदैवत // 68 / जहेऽनेन किमित्युक्ताः सत्याऽऽरक्षा न्यवेदयन् / राजपुत्र्याश्चंद्रवत्या हृतां रत्नकरण्डिकाम् |