________________ श्रीअमम // 24 // स्वयं पुरःस्थितां भैमी पुरस्कृत्य नलं ततः। पदातिमात्रवद्यान्तं साश्राः प्राग्मंत्रिणोऽभ्यधुः // 34 // भक्तिस्त्वयि दृढास्माकं तस्याश्चा | जिन| वसरोऽधुना। किंतु त्वां कूबरः क्रूरोऽनुयातोऽपि रुणद्धि नः॥४५॥ एषोऽपि नैषधेः किश्चानुजस्तेऽपिंतभूस्त्वया। त्वद्वत्सेव्य- चरित्रम् |स्ततोऽस्माकं स्तंभाना राजवेश्मनः // 36 // सहानुगामिनी तत्तेऽधुनैका सुकृतावली। दवदंतीप्रिया चैषा मंत्री मित्रं परिच्छदः॥३७॥ नागराणा मत्यन्त. | आद्रियस्व रथं नाथ ! प्रसीद कथमन्यथा / सुकुमारा मालतीव मार्गे नेया ? त्वया प्रिया // 38 // करींद्रः कवलमिव मंत्रिणां प्रार्थने शोक | रथम् / स्वीकृत्य भैमी चारोप्याऽऽपृच्छय पौरान्नलोऽचलत् // 39 // विरुद्धरसवैरस्यं हहा संसारनाटके / कोद्वाहाडंबरः स्वामिभैम्योः श्रृंगारसुंदरः॥४०॥ क्वायं च करुणावेशः प्रवासक्लेशसंश्रयः। नागरैरिति शोचद्भिः सिक्तोऽध्वाऽश्रुजलप्लवैः // 41 // युग्मम् // एक| वस्त्रं प्रेक्ष्य भैमीमाक्रन्द्रकमयं जगत् / पौयः काश्चिद् व्यधुः काश्चिद् हृदयस्फोटमासदन // 42 // पंचहस्तशतीमानं मानं व्योम्न इवोस्थितम / परीमध्येन निर्गच्छन्नला स्तंभ व्यलोकयत् // 43 // हेलया कीलकमिवोत्पाट्यैनं स कुतूहलात / तत्रैवातिष्ठिपद्भूयो ज्ञीप्सुः / | स्वस्थापनामिव // 44 // बलं लोकोत्तरं तस्य प्रेक्ष्यातयंत नागरैः / नूनमस्य विपदायी विधिरेव न कुवरः // 45 // पुराऽमुमेव खेलं| तमुद्याने सह कबरम / ज्ञान्याख्यद्भरतार्द्धशं प्राग्भवे मुनिदानतः॥४६॥ यो वा चलयिता स्तंभ पुरीमध्यस्थमन्नतम / ध्रुवं स भर * सर्ग-६ तार्दशः सत्यं चाभदिदं द्वयम // 47 // स्वामी भावी कोशलायां न जीवति नले परः। एपापि ज्ञानिवाक सत्या संवादादाविनी द्वयोः॥४८॥ अलं तञ्चिन्तया नूनं न नन्दिष्यति कूबरः / पुननेलेन जित्वाऽक्षेनिजं राज्यं ग्रहीष्यते // 49 // प्रजाहृदयतो दुःखस्तंभ // 24 // पस्तंभवत्प्रभो ! / उत्पाटये वादेत्य निजागममहोत्सवात् // 50 // इत्थं लोकगिरः शृण्वन्प्राप्तः प्रबिहिनलः / क्षमयित्वा बोधयित्वा पौरान स्निग्धान्यवर्तयत // 51 // तदा च जननीत्युक्त्वा कूबरेण निवारिता / अनुज्ञाता नलेनापि नास्थाद् भैमी वदंत्यदः