________________ // 239 // निष्का भीमजा // 14 // निःस्नेहस्यास्य वा स्नेहकृतिमेवं चिकीर्षसि / तदयं कठिनग्रावद्रावणोपक्रमास्तव // 15 // दुःकर्मकीटैरुदितैरन्तःशून्यीकृतो नलः / नल एवाभवन्मन्ये चैतन्येन विवर्जितः॥१६॥ ततः सत्पुरुषे तस्मिन् परुषे शैलवत्तदा / कांतोपदेशैर्वैयर्थ्य लेमे मेध्या- वहार | जलैरिव // 17 // दृशाऽप्यवीक्षिता भर्ना दुर्वाचा च तिरस्कृता / दवदन्ती रुदत्येनं गोत्रवृद्धैरबोधयत् // 18 // कालदष्टो यथा मंत्रैः कुवरेण | सन्निपाती यथौपधैः / नामोति चेतनामाप्तवाक्यैरपि तथा नलः // 19 // नलः प्रत्युत दुर्बुद्धिर्बुद्धि द्यूतेऽधिकां दधौ। अहारयद्भुवं* कण्डिना भैम्या समं चांतःपुरं निजम् // 20 // अतिश्वपाकः स्वमनःपरिपाकेन कूबरः / आचिच्छेद नलस्यांगात्स्वयं यद्भूषणादिकम् // 21 // |नलभूपः स्ववात्सल्य नैतस्मादाच्छिदत्पुनः / अहो सहोदरत्वेऽपि द्वयोः कीदृशमन्तरम् // 22 // पित्रा ददे यौवराज्यं राज्यं मे देवनैः सितो नलः | पुनः। तद् व्रज त्यज ममिमित्यूचे त्वनुजोऽग्रजम् // 23 // नियोगीव प्रभोः शुद्धो नलस्तस्य प्रतीतये / संव्यानद्वयवानेव निर्ययौ। तमिति नुवन् / // 24 // मा द्राप्सीस्त्वमरे लक्ष्म्या दासी त्यक्ताप्यसौ मया। सत्त्वकोटिपरिक्रीती यन्मामेव श्रयिष्यति // 25 // माऽनुगास्त्रं नलं छूते जिता मेऽन्तःपुरे विश / भैमीमिति निषेधन्तं कूबरं मंत्रिणोऽभ्यधुः॥२६॥ भर्तारमनुगच्छन्ती मा रौत्सीस्वं | सतीमिमाम् / अवाच्यमपि मा वोचः सत्यः क्रुद्धा हि वह्निवत् // 27 // कुर्वति भस्मसादुष्टं तदियं मातृवचया। पूज्यैव ज्येष्ठपत्नीलाज्ज्येष्ठो भ्राता हि तातयत् // 28 // युग्मम् / / किञ्च ग्रामादिदानेन सत्कर्तुं युज्यते नलः / शुभोदाय विनयः स्याल्लघोर्येष्ठबान्धवे // 29 // एतन्न कुरुषे चेत्तत्सपाथेयं ससारथिम् / समर्पय रथं वैरं किं ? तेऽस्ति ज्यायसा सह // 30 // नलो हि चन्द्रवल्लक्ष्मीत्याजितो | विधिनाऽधुना / परं संभाव्यते त्वद्वत्स्वीकर्ता तामयं पुनः॥३१॥ ततो विमुंच दौर्जन्यं सौजन्यं रव्यापयाधिकम् / इत्युक्तः कूबरो- | // 239 // ऽमात्यैः करोऽपि रथमार्पयत् // 32 // नलः प्रोचे रथेनालमुद्धाते भंगुरोह्यसौ। मम सत्वरथोऽस्त्येव भृमृदस्खलितः सदा // 33 //