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________________ श्रीअमम चरित्रम् // 230 // स्य सुरैरपि // 43 // प्रणमन्ती सुतां साधं पुष्पदंत्यप्यशादिति / पुत्रि! शीलं पतिं च खलं त्याक्षीर्व्यसनेऽपि मा // 44 // इत्थं | पुष्पवतीभीमावनुशिष्य खनंदनाम् / पश्चान्मुखौ न्यवर्त्ततामश्रुपूर्णविलोचनौ // 45 // नलोऽपि श्वशुरौ खावनुज्ञाप्यारोप्य वल्लभाम् / पूर्व रथे निजे पश्चादंकेगात्पृष्ठतः पितुः // 46 // निषधे खां पुरीं याति चतुरंगचमूभरैः / भूश्चलद्भूधरा शंके श्लथाऽगाखे रजोमिषात् // 47 // अस्मत्स्वामिप्रतापेन जितो | व्योग्नि गतोऽपि किम् / सूरः प्रतपतीतीव क्रुधा रुद्धोऽश्वरेणुभिः // 48 // अदर्शि चातुराश्रम्यं हस्त्यश्वरथपत्तिभिः। वर्णज्येठस्य भूपालविकमस्येव नूतनम् / / 49 // त्रि०वि०॥ तस्यैवं व्रजतो राज्ञो मातंगानां मदेखि / अशुचिं खं रविर्मत्वाऽगात्पराब्धि विशुद्धये // 50 // आश्रित्य वाजिव्याजेन तमसा दिवसात्यये / निन्येऽस्तं शत्रुणा सूरोऽप्यहो देवविजूंभितम् // 51 // कजलश्यामलरुचान्धकारेण भृतं जगत् / लेखकस्येव कालस्य मषीभाजनवद् बभौ // 52 // निनुवाने जगद् ध्वान्ते दृष्टिसृष्टिं विनिम्नति / स्पशनेंद्रियमेवाऽभूदकुंठितपराक्रमम् // 53 // तथा तमोब्धिवेलाभिर्व्याप्तेयं वसुधा यथा / लोकैः स्थलं जलं गर्तशैलवृक्षाद्यलक्षि न // 54 // तथापि कौशलोत्कंठाव्याकुलः कौशलापतिः। नास्थाद्रागातुराः किंवा स्पष्टं कष्टं विजानते 1 // 55 // खद्योतद्युतिभिरिव | दीपिकाभिर्मनागपि / अभिद्यत न विश्वान्धंकरणं तत्तमः क्वचित् // 56 // सैन्यं स्खलतत्पतद्वीक्ष्य रन्धाश्मगहनादिषु / तदांकपालीशयितां भैमीमित्यादिशन्नलः // 57 / देवि! क्षणं प्रबुध्यस्ख द्वादशार्कसमलिषः। तिलकस्यांशुभिः खस्य छिन्धि सैन्यांध्यकृत्तमः // 58 / / उत्थाय दवदंती खभालस्थलममीमृजत् / अदीपि तिलकश्चाशु निशाध्वान्तंगिलोऽर्कवत् // 59 // ततः सुखं व्रजन्मार्गे तिलकालोकतो जनः / स्वं पुनर्जीवितं मेने भैमी स्त्रीतिलकं पुनः॥६०॥ पश्यन्त्या दवदन्त्याऽथ मार्गमग्रे निरेक्ष्यत / ध्वान्तौधः पिंडित 469-*-*-483-8-24832-24838-8*48** जिन| दमयन्ती भालस्थ तिलकेन | मार्गे दूरीकृतोऽन्धकारः // 230 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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