________________ जिन चरित्रम् मण्डपे दव दन्तीं दृष्ट्वा भूपानां विविधा क्रीडा श्रीअमम- का शक्राणां सुतापुण्यैः समागतान् / मंचानुच्चांस्तदंतश्चाकारयद्भीमभूपतिः॥६७।। युग्मम् // मंचेषु कुर्वतीयंत्रपत्रिका प्रेक्षणं जनः / मेने ऽवतीर्णाः स्वारीनिनिमेषाः कुतूहलात् // 68 // पद्मरागसूर्यकांतपांचाल्यौ तौरणाग्रगे। मिथः प्रतिमिते लोको न विवेत्तुमभूत्प्रभुः // 226 // E69 // दृष्वेव स्वाधिकान् भूपान् सौन्दर्यान्मकरध्वजः / नष्टस्तत्र ध्वजान्मुक्त्वा मकरध्वजदंभतः // 70 // प्रातः स्वयंवरो भावी भैमी- दर्शनलग्नकः / इत्याशासंगिनां राज्ञां निद्रा सेपेव नाऽऽगमत् // 71 // खांगसंस्कार,गारव्यग्रेष्वेषु निशाप्यथ / कृपयेवागमत्सुयोंऽप्युदगात्कोतुकादिव // 72 // भीमाऽहानादयोऽमर्त्यसंभाव्यैर्वस्वभूषणैः। भूषिताः क्षमाभुजो मंचेष्वेयुः कल्पद्रुमा इव // 73 // | सिंहासनस्थास्ते रेजुर्नवीननरसिंहवत् / भ्रूभंगविहितासंख्यहिरण्यकशिपुव्ययाः // 74 // श्रीखंडचर्चिता मुक्तालंकृता श्वेतवस्त्रभृत / सद्यः समुदिता क्षीरोदधेर्लक्ष्मीरिवापरा // 75 / / का मे मुखेन्दुना स्पर्द्धा निःकलंकेन वामिति / आक्षिप्य सह ताराभिर्जम्बूद्वीपविधू | इव // 76 / / हठाद्विधृत्य श्रवणपाशाम्यां विनियंत्रितौ / वहंती मौक्तिकोदात्तदंतपत्रद्वयच्छलात् // 77|| युग्मम् // ललाटनित्योदय| नस्तिलकस्य प्रभाभरैः / प्रभाः प्रभाकरस्यापि निरस्यन्ती निरर्गलैः // 78 // अमाजाता जगनिःस्वेश्वरस्थितिविडम्बितम् / धत्ते श्रीरिति हस्तेन लीलाब्जं विभ्रती रुपा // 79 // स्वच्छसद्दणसवृत्तमुक्ताहारेण भृभुजाम् / स्वकंठवर्तिनाऽऽख्यान्तीदृग्गुणस्य वरस्रजम् // 80 // मौर्वीमिव स्वचापस्य दत्तां कुसुमधन्वना / वशीकत पतिं माला धारयन्ती वयस्यया // 81 // पुण्यैश्छत्रच्छलान्मृत्तरिख मूनि निषेविता / चामरच्छचना स्वर्गमय॑गंगायुगेन च // 82 // मंडपं मंडयामास तदैत्य दवदंत्यपि / आज्ञया स्वपितुर्वेदिवधूस्तुतगुणोदया // 83 // नवभिःकु // क्रीडासरस्यां पंपोस्तस्यां पेतुर्महीभुजाम्। दृष्टयस्तृषितागौवत्सौभाग्यांभःपिपासया // 8 // स्फुरत्परिमलां तां च प्रसन्नां वीक्ष्य पार्थिवै / चित्रमंतर्मदोद्भूतविकाररित्यचेष्टत // 85 // अन्यराजन्यहारेभ्यः सारं हारं निजं नृपः / // 226 //