________________ जिन चरित्रम् दवदन्ती स्वरूपवर्णनम् श्रीअमम- | प्राप वणिग्नीवीव सा लघु // 29 // उत्कंठिताभिः सर्वान्तःपुरीभिभृशमथिता। ददौ साङ्गपरिष्वंगमेत्य धात्रीकरान्मुदा // 30 // हस्तोल्लासदेवकन्याः पुरोऽस्यन्ती रिरिंख सा / भूमौ पातालकन्यास्तु पश्चाच्चरणताडनैः // 31 // झणत्कारकरैः स्वर्णधरीमधुरस्वरैः / // 224 // साऽशिक्षत पदन्यासं नवीनकविबुद्धिवत् // 32 // धाब्यस्ता जानुनि न्यस्यांगुलीलग्नामनीनृतन् / दोंदोमित्यास्य वाद्येन चप्पुटीतालशालिना // 33 // साक्षालक्ष्म्यामिवैतस्यां क्रीडन्त्यां स्वगृहांगणे / तत्सेवका इवाभूवन् प्रत्यक्षा निधयः पितुः // 34 // केलिभिः प्रौढरसाभिः स्वदेहारामजन्मभिः। संतोष्य शैशवं शंके विसृष्टमगमत्तया // 35 // कलाचार्यांतिके पित्रोपनीता धिषणाधिका / साऽष्टादशलिपीश्चके स्वसाद्विद्याश्चतुर्दश // 36 // सम्यक्त्वमंत्रः प्राग्जन्मसिद्धस्तस्याः स्वयं व्यधात् / नवतत्त्वनिधीन् वश्यान् स्याद्वादोद्दामदैवतान् // 37 // तत्प्रभावहतास्तस्या न पुरः खेलितुं क्षमाः। इंद्रजालविदः प्रौढा इब मिथ्यादृशोऽभवन् // 38 // स सहस्रेण दीनारलक्षणास्याः कलागुरुम् / सत्कृत्य कृत्यवित्तोपं प्राप्य राजा व्यसर्जयत् // 39 // श्रुतकेवलिवन्मिथ्यादृसिद्धांतव्यपोहनः / स्थापनै नसिद्धांतस्यात्मज्ञानकलां तथा // 40 // साऽदर्शयञ्जनकाग्रे यथा सोऽप्यभवद् द्रुतम् / तत्त्वज्ञानकलापात्रं स्याद्वाद इव मूत्तिमान् // 41 // यु०॥ पुण्यैः साक्षात्कृतां स्वर्णप्रतिमा निवृतिः सुरी। समर्प्य भीमजामूचे वत्सेऽसौ मृत्तिरर्हतः॥४२॥ भाविनः | शांतिनाथस्य पूजयेस्वमिमां गृहे / इत्युक्त्वांऽतर्दधे वेगात्साऽपि चक्रे तथा मुदा // 43 // सा प्राप यौवनं कामराजवासैकपत्तनम् / लावण्यलक्ष्म्याऽधिष्ठातृदेव्येव यदधिष्ठितम् // 44 // भीमजावक्त्रलावण्यलक्ष्मीलिप्सारसाद् ध्रुवम् / पद्मः पद्मासनं चंद्रश्चंद्रमौलिं च Sell सेवते // 45 // शंके न कबरी तस्याः किंतु लक्ष्म मुखेंदुतः / पश्चाद्भागेन निर्यातं नाशावंशेन ताडितम् // 46 // रराज मुखचंद्रस्य Jake|| नित्योदयविराजिनी / तदोष्टमुद्रा संध्यावदऽयावकरसारुणा // 47 // शुचिर्दन्तावली वस्त्रे रेजेऽस्या दंतवाससा / अक्षमालेव वाग्देव्या सर्ग-६ // 224||