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________________ // 22 // | सौधर्म क्षीरडिंडीरानाम्नौ जातो | ऽभून्मुनीश्वरः / / 71 // पारितप्रतिमं तं च धन्यो नत्वा पदद्वयम् / संवाह्योचे कुतः साधो ! त्वमागाः क्व नु वा गमी ? // 72 // मुनिदेशाल्लंकायां गुरुसन्निधौ / यास्यामि विनितगतिमेघवृष्टयाऽभवत् विह // 73 // मेघे वर्षति साधूनां नोचिता गमनक्रिया। अत्रैवास्था प्रतिमया वृष्ट्यन्तक्रियया ततः // 74 // अभिग्रहोऽद्य मे पूर्णस्तवापि च महामते ! / वसतौ वत्स! गच्छामि सांप्रतं क्वाऽप्यहं ततः॥७५।। धन्योऽप्यूचेऽधुना साधो ! पंकदुःसंचरा धरा / तदारोह याप्ययानसखं मे महिषं सुखम् // 76 / / सोऽप्युवाच महाभाग! साधवः स्युः कृपालवः / हिंसासखीं प्राणिपीडां कुर्युस्ततः कथं वद // 77 / / यतयः पादगतयः सदैव स्युरिति वन / महिषेण | समं साधुनिन्ये धन्येन पत्तनम् // 78 / / महर्षि महिपीपालस्तदुपान्तगतं स तम् / प्रणम्य प्रांजलिः प्रोचे भक्तिकोमलया गिरा // 79 // खं प्रतीक्ष्य प्रतीक्षस्वात्रैव तावन्मुनीश्वर!। दुग्ध्वाऽहं महिषीर्यावदुपावर्ते गृहाद् द्रुतम् / / 80 // तथाकृते मुनीन्द्रेण गत्वा धन्यः खसद्मनि / दुग्ध्वा च महिषीदुग्धकुंभमादाय चाऽऽगमत् / / 81 // पुण्यलक्ष्म्या परिरब्धमिव रोमाञ्चदन्तुरम / यातममिवोल्लासि | विभ्राणः सर्वतो वपुः // 82 // मुक्तिश्रीदर्शनोत्सुक्यादिव विस्फारितेक्षणः। धन्यमन्यस्तेन धन्यः पयसापारयन्मुनिम // 83 // पत्तने पोतने तत्र वर्षाः स्थित्वा स संयमी / चकार लंकाऽलंकारं गुरूत्कण्ठो विहारतः / 84 // श्राद्धधर्म ससम्यक्त्वमात्तं शुद्ध मुनेस्ततः / | निरवाहयतां धन्यधूसर्यावार्यमानसौ // 85 / / कालेन दम्पती तौ च व्रतमादाय सद्गुरोः। पालयित्वा च सप्ताब्दी विपेदाते समाधिना | // 86 // पेयुपमंगलं कृत्वा पात्रदानादुपाज्यं च / पुण्यं तौ जग्मतु हैमवते युगलधर्मिणौ // 87 / / शुभध्यानेन मृत्वा तावप्यभूतां सुरोत्तमौ / सौधर्म क्षीरडिंडीराभिधौ दाम्पत्यशालिनौ // 8 // इतोऽस्ति भरतेऽत्रैव विषयेषु मनोहरः। गेयवत्प्रथितग्रामो विषयः कोशलाह्वयः // 89 // तस्यालंकरणं स्वर्णरत्नधाममनोहरा / // 221 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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