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________________ श्रीअमम चरित्रम् // 220 // // 52 // कुर्वन् जनमनोहपं वर्पतुर्विश्वमूर्द्धगः / आगाजिगीपुवत्सर्वक्ष्माभृन्मृनि पदं ददत् // 53 // चतुर्भिक० // जगत्सन्तापकृन्मि- जिनबलब्धोष्माक्रान्तभृतलम् / भीष्मं विरोधिनं ग्रीष्मं निग्रहीतुमिवास्य च // 54 // घना घनाघनघटाः स्तम्बेरमघटा इव / प्रसमुव्योंम्नि गर्जन्त्यो भरन्त्यः क्षमा मदाम्बुभिः // 55 // दधावे वाहिनीवाहैवनैः पवनैरिव / प्लावयद्भिर्महीं बलप्ततुमुलैः फेनिलमुखे // 56 // | समाधिम* | केकिभिः पत्तिभिरिवाकृष्य खड्गानिवोरगान् / कृत्वा स्फरानिव स्फारान् कलापानिर्ममे रणः // 57 / / चतुर्भिक० // इन्द्रेण चापनि- 1sts रणे द्वयो राभीरकुले युक्तधारानाराचडम्बरः / धनोपलैर्वज्रधातैरपि ग्रीष्मो हतो ध्रुवम् // 58 // यत्तस्य देहावयवा इव रक्तच्छटारुणाः / इन्द्रगोपच्छ- ममिलात्पृथ्व्यां विक्रमेणोच्छलन्त्यमी // 59 // युग्मम् / / भूगोलोऽप्यगलन्मन्ये भिया मदनगोलवत् / चित्रं शीतैरपि जलैः स्पृष्टः लासस्य शक्रप्रतापजैः // 60 // लगन्नाजानुचित्कारकारी का रीतिरंहसां / ईदृगेवेत्यऽशात्प्रश्नोत्तरं लोकस्य कर्दमः // 61 // जातास्वसूर्यप- वर्पत्यब्दे श्यासु महिषीषु कुटम्बिनाम् / काले राजमहिष्योऽधुस्तत्र गर्व खलोज्झनात् // 62 // धन्यश्चारयितुं वरात्रे तत्रागमद् वने / महिपी: प्रतिज्ञाधा* कर्दमोत्कर्पिहर्ष–कारकारिणीः // 63 / / धारासारैश्च संनद्धे वर्पत्यप्युपरि स्थिते / धीरो धाराधरे मूर्ध्नि छत्रमावरणं वहन् // 64 // * रिमुनेवैया वृत्यकरणम् | चरन्तं महिषीव्युहं सोऽप्रत्युहमनुव्रजन् / एकोऽपि क्रूरसत्त्वेभ्यो निर्भयः कानने भ्रमन् ॥६५॥न्यस्तैकपादं मापीठे तपस्यातिशया सर्ग-६ | त्कृशम् / ऊर्ध्वासनस्थं सोत्कम्पं झंझामारुतताडनात् // 66 // आजानुलम्बिदो शाखाधिस्फुरत्पाणिपल्लवम् / सहमानं वृष्टिकष्टं मुनि वृक्षमिवैक्षत // 67 // चतुर्भिक० // धन्यः कृपालुर्दधेऽस्य मुनिच्छवं क्षमापतेः / एकच्छवं क्षमास्वाम्यं द्विधा स्वस्येव सूचयन् // 22 // // 68 / / मुमुचे वृष्टिकप्टेन साधोछत्रावृतं वपुः / भावच्छत्रावृतं पापवृष्टिकष्टात्तु तन्मनः // 61 / / व्यरंसीनाम्बुदो वृष्टेयानदृष्टेन संयमी / च्छत्रसृष्टेन धन्योऽपि मन्ये स्पर्धा येऽप्यधुः // 7 // भग्नप्रतिज्ञवन्मेधे प्रनष्टे सप्तमेऽहनि / तदन्ताभिग्रही पूर्णप्रतिज्ञो
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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