________________ // 219 // | क्षमयित्वा मुनिं तं तौ वापराधं मुहुर्मुहुः // 34 // निषिध्यान्यं जनं दातुं कल्प्यभक्तादिभिः स्वयम् / प्रतिलाभ्य मासकल्पं संस्थाप्या| राध्यतां मुदा // 35 / / युग्मम् // सम्यक्त्वं दुर्लभं ताभ्यां मुनींद्रात्प्राप्य रत्नवत् / अयोजि श्राद्धधर्मेण समं कल्याणमूर्तिना // 36 // रुद्धमुनि अपहारमतीचारचौरेभ्यस्तद्वयस्य च / दक्षौ ररक्षतुः सावधानौ तौ क्षत्रियौत्तमौ // 37 // निर्लोभोऽपि मुनिश्चित्रं प्रेप्सुः सोऽष्टापदं| धर्मोपदेशेन चिरात् / तावापृच्छय ययौ स्वार्थनिष्ठाऽहो तादृशामपि // 38 // तीर्थदर्शनतः स्थैर्य नेतुं धर्ममहारसम् / निन्ये वीरमतीमष्टापदे द्वयोः श्राद्ध धर्मस्वीकाशासनदेव्यथ // 39 // यथास्थानमानवर्णस्फूर्तीमूत्तीश्च तत्र सा। चतुर्विंशतिमद्राक्षीदर्हतामर्हिताः सुरैः // 40 // अन्तर्मुखानि सा खानि कृत्वा प्रत्यङ्मनःस्थितिः / निष्पन्दा योगिनीवाभूल्लब्धमुक्तिपदेव वा // 41 // भक्त्या प्रणम्य ताः साऽऽगात्स्वपुरे *त्याश्चाष्टादेव्यनुग्रहात् / चक्रे प्रत्यहंदम्लानिराचामाभ्लानि विंशतिम् // 42 // चतुर्विंशतयेऽर्हद्भ्यस्तमोध्नान्भास्करानिव / सा स्वर्ण- पदतीर्थयातिलकान् रत्नैर्भासुरान्निरमीमपत् // 43 // अन्येयुः सपरीवारा साऽऽरुह्याष्टापदेऽर्हताम् / स्नात्रार्चापूर्वकं भालेष्वारोप्य तिलकान्यथा तपपूर्वक // 44 // चारणश्रमणादीनां दानं दवा यथाविधि / तदुद्याप्य तपस्तुष्टा स्वपुरे पुनरागमत् // 45 // युग्मम् // भिन्नांगावपि तौ चतुर्विंशति सुवर्णतिल|चित्रमेकधर्मांगमानसौ / काले समाधिना मृत्वाऽभूतां स्वर्गेऽपि दम्पती // 46 // च्युत्वा राजाऽथ बहलीविपये पोतने पुरे / क चडापणं आभीरधर्मिलासस्य रेणुकायां सुतोऽजनि // 47 // धन्याभिधस्य तस्यैव धूसरीत्यभवत्प्रिया / स्वर्गाद्वीरमतीजीवः प्रच्युत्य प्रेमनिर्भरः // 48 // महिपीश्चारयामास धन्योऽथ धनलिप्सया / आभीराणां पाशुपाल्यं नीवी ह्या जनेऽग्रिमा // 49 // अथान्यदा | *तडिद्दण्डस्वर्णदण्डमनोहरम् / भास्वत्तापहरं मेघडम्बरं मूर्ध्नि धारयन् // 50 // तर्जयन्निव गर्जाभिघनश्रीजन्मभिः परान् | |219 // जगजीवनदानकशौण्डः सर्वानृतून मुहुः // 51 // जडाशयरतान् राजहंसानाशु प्रवासयन् / तानेव वासयन्नामजडाशयसंगतान्