________________ श्रीअमम जिन // 218 // // 18 // अथो व्यज्ञपयन्नत्वा श्राम // 20 // तत्र वीरमतीजानि दोहि देहस्यैवोपकारकृत लात् // 15 // तद्गुणस्तुतिवाचाला माला भृङ्गकलखनः / तत्कंठेऽक्षेपि कनकवत्या मुदितचेतसा // 16 // दिव्यतूर्यैः समं स्फूर्जत्यप्सरोजनमंगले / औचित्यघटनास्तोत्रमुखरे च नृपोत्करे / / 17 / / वसुवर्षे क्रियमाणे श्रीदादेशाच्च किङ्करैः। उत्सवेन श्रीकनकवीं चरित्रम् शौरिरुपायत // 18 // अथो व्यज्ञपयन्नत्वा श्रीदमाबद्धकंकणः / शौरित्रागमे हेतुं जिज्ञासे भवतामहम् / / 19 / / तस्मै शशंस सोऽपीति दुन्दुनाऽऽ जंबूद्वीपस्य भारते / अष्टापदाढ़ेः पार्श्वेऽस्ति श्रीसंगरपुरं पुरम् // 20 // तत्र वीरमतीजानिर्मम्मणोऽभन्महीपतिः। स संचिचीपुः गमनहेतौ पृष्टे श्रीदेन पापड़ेि पापईि बहमन्यत // 21 // सोऽवादीत्पार्पदान्मिथ्या व्यसनं मृगयां विदुः / असौ राज्ञां विनोदोहि देहस्यैवोपकारकृत | वीरमती॥२२॥ अनेन लघुमुत्थानं मेदच्छेदः कृशोदरम् / चललक्ष्यभिदादक्षं निर्भयं स्याद्वपुर्नृणाम् // 23 // मम्मणरा। सोऽन्यदा सप्रियः पापः पापय स्वपुराद् व्रजन् / सार्थेन सममायातमद्राक्षीसंमुखं मुनिम् // 24 // श्रेयः श्रीशकुनमपि जकथा | विचार्याशकुनं पुनः / पापद्धेः स वलित्वा तं हठादाकृष्य सार्थतः // 25 // धृत्वा राजकुले नीत्वा सप्रियोऽप्यप्रियकभूः / खेद- कथिता | यामास घटिका द्वादश क्रूरमानसः // 26 // युग्मम् / / ताभ्यां जातानुकंपाभ्यां मुक्त्वा मुनिरपृच्छयत / आगतोऽसि कुतः स्थानात् क्व Cil वा गन्ताऽसि कथ्यताम् // 27 / / आख्यत् क्षमानिधिः सोऽपि नन्तुमष्टापदार्हतः। रोहीतकपुरात्सार्थेनामुना सममागमम् // 28 // युवाभ्यां धार्मिकात्सार्थात्तस्मादस्मि वियोजितः / अर्हत्तीर्थयात्राविघ्नोऽभूद्भाग्यहीनस्य मेऽधुना // 29 // साधोः शमामृतैः कोपवह्नौ सर्ग-६ | विध्यापिते तयोः / स्वान्ते क्षेत्र इव प्राप करुणावल्लिरुद्गमम् // 30 // सद्वासनादलां सम्यग्दृष्टिमंजरितां च ताम् / दयाधर्मोपदेशेन | मुनिश्चक्रे फलेग्रहिम् // 31 // दानशीलतपांसि स्युः पृथक् समुदितानि च / मर्त्यखर्गापवर्गश्रीप्राप्तये भावतोऽङ्गिनाम् / / 32 // इच्छन्तौ | // 218 // * दम्पती धर्मरहस्यं साधुपार्श्वतः / तथाऽऽद्रियेतां पापेन तयोर्नेशे यथारिणा // 33 // सत्त्वोन्मुखौ तमस्त्यक्तौ वर्तमानौ रजोगुणे / *