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________________ श्रीअमम जिनचरित्रम् // 216 // * सुदर्शनौ च कटको मेखलां स्मरदारुणाम् // 77 // च० क०॥ तैरंगलग्नैर्धनदोपमोभूद् वृष्णिसूरपि। स्वामी स एव यः शुद्ध नये भृत्यं स्वतुल्यताम् // 78 // शौरिं विलोक्य धनदेनाप्येवं सत्कृतं तदा / बाढं मुमुदिरे श्यालाः सर्वे विद्याधरा अपि // 79 // सकौतुको | | हरिश्चंद्रोऽप्येत्य तत्र धनेश्वरम् / प्रणम्य विनयाद् बद्धांजलिरेवं व्यजिज्ञपत् // 8 // सोत्कर्ष भारतं वर्ष वर्गप्वद्यैव मन्महे / स्वयंवरे स्वयंवरईक्षाव्याजाचया देवानुगृह्यते // 8 // लक्ष्म्याहूतपुरुहूतसभामण्डपमद्भुतम् / ततो निर्मापयामास स स्वयंवरमण्डपम् / / 82 // प्रतिच्छ-16 मण्डपे न्दानि श्रीदविमानस्याद्भुतश्रिया / तदन्तरुच्चान्मश्चांश्च वेल्लत्केतूनचीकरत् // 83 // श्रीहरिश्चन्द्रराजेन संभ्रमाकारिताऽर्चिताः / उपावि श्रीदेन कृतं वसुदेवस्व| क्षन्नृपा विद्याधराश्चैषु सुरा इव // 8 // अथो धृतसितच्छत्रः सुरीचालितचामरः / हंसयानोऽप्सरोगीतावहितो बन्दिभिः स्तुतः॥८५॥ रुपाच्छा| श्रीदः स्वयंवरं द्रष्टुं तं स्वयंवरमंडपम् / प्रकान्तप्रेक्षणं द्वारस्फारतोरणमाययौ // 86 // युग्मम् // प्रत्युद्गम्य नृपेणायं कन्यां धन्यां वि- दनम् जानता / उपावेशि महामञ्चे नभःस्थितमहासने // 87 / / वसुदेवोऽपि देवोपनीतालंकारभासुरः। युवराज इवास्यैव पार्श्वमेत्य निषेदि* वान् // 88 // श्रीदः स्वोमिकामात्मनामांकां तत्करे न्यधात् / श्रीदमूर्तिरभूदुन्दुरपि तस्याः प्रभावतः // 89|| गौरवच्छ नाच्छन्नं निधीशस्तं हहा व्यधात् / नृदेवा अपि देवानां निकृति ही न जानते // 90 // कुवेरमूर्तिमालोक्य तं तत्र सकलो जनः / प्रघोपाद्वैत| मित्युच्चैः कौतुकाकुलितो व्यधात् // 91 // अहो कनकवत्येव श्रेयाकनकवत्यसौ। आगात्स्वयंवरे यस्या द्विमृतिनिधिनायकः * सर्ग-६ // 92 // सदशश्वेतवसनव्याजतो जनुकन्यया। सख्येव द्वैधमीयुष्या लिंग्यमानतनुस्तदा // 93 / / त्यक्त्वेव मेरुं नक्षत्रयुक्तेनेन्दुद्वयेन * | च / श्रिताश्चर्येण मुक्तांकदन्तताडंककैतवात् // 14 // तवेव भाग्यं सौभाग्यं नागकन्यासु नेत्यदः / हारवेषेण शेषेण ज्ञाप्यमानेव // 216 // | सादरम् / / 95 / / सौन्दर्यातिशयं स्वांगे न संमांतमिव स्वयम् / वरमालापुष्पमालापदेशाद् विभ्रती करे // 96 / / सौभाग्यसंगरे जित्वा 8
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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