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________________ श्रीअमम जिन // 206 // | तयापि कथिते शौरौ तमानेतुं तथास्थितम् / प्रैषि विद्यौजसा पात्री धात्री राज्ञा भगीरथी // 94 // आरक्षेभ्यस्तयाऽऽच्छिद्य नीतो गन्धसमृद्धके / उवाह पितृदत्तां च विधिना स प्रभावतीम् // 15 // प्राक् तपोदत्तभाग्येन सौभाग्येन वशीकृताः। एवं विद्याधरीः पर्यणैषीद्च | दुन्दुः सहस्रशः॥१६॥ दुहितरमथ कौशलस विद्याधरनृपतेः पुरमेत्य कोशलाख्याम् / नव इव मदनः सुकोशलाह्वां परिणयति स्म स विस्मयैकधाम / / 97 // अममचरिते भाविन्येवं तयोः सहजन्मनोर्जनयितुरिमं नाम्ना दुन्दोस्तुरीयभवस्थितौ / सुचरिततरोः सौभाग्यश्रीकथाद्भुतमञ्जरी नवरसभरं पीला प्रीतिं भजन्तु सदालयः॥९८॥ इत्याचार्यश्रीमुनिरत्नविरचिते श्रीअममस्वामिचरिते महाकाव्ये चतुर्थभवे वसुदेवहिण्डौ तस्यैव श्यामादिसुकोशलान्तमानुषीविद्याधरीपरिणयनतदन्तर्गतविष्णुकुमारचरित्रवर्णनः पञ्चमः सर्गः // अं० 1000 // षष्ठः सर्गः। रित्रम् पढालपुरेश | हरिश्चन्द्र वर्णनम् सर्ग-६ इतोऽस्ति भरतस्येशस्येव याम्या भूषणं / पुरं विशालं पेढालं भुजवद् भोगिभासुरं // 1 // यत्प्रासादः पताकाभिश्चपेटाभिरिवानिशम् / ताड्यमाना वजन् मन्ये दूरं भीतामरावती // 2 // सायं प्रातः करोत्यर्कः पद्मरागमयीं करैः। यत्र हैमी तु मध्यान्हे हाली स्फाटिकीमपि // 3 // अमान् यत्र मर्त्यत्वं प्राप्तांस्तद्विरहासहम् / आराखुमागमन्मन्ये यन्मृर्त्या दिविषत्पुरम् // 4 // विश्वोपयोग्यसंख्यातनिधिगेहाग्रजैर्ध्वजैः। आक्षिपंतीव यत्रेभ्याः श्रीदं नवनिधीश्वरम् // 5 // कीर्तिशुभ्रीकृतहरिश्चंद्रमप्यस्तलांछनैः / कलौघेर्मुद्रयंस्तत्र // 206 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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