________________ // 197 // | मदनवेगा लग्नं युद्धे त्रिशिखरप राजयः 24032-2-2463900- | दण्डवेगचण्डवेगाः प्रगेऽनमन् / एत्य तद्वन्धवः शौरि विद्यादायी तृतीयकः // 24 // | नीत्वा पुरान्तर्मदनवेगायास्ते करग्रहम् / यादवं कारयामासुस्तत्र चातिष्ठिपन् सुखम् // 25 / / आवयं दुन्दुरन्येधुर्वरं मदनवेगया। मार्गितो दत्तवान्मन्येऽनेनाऽभ्यस्तोऽपिनद् नहि // 26 // नत्वा दधिमुखश्चैनमन्यदेवं व्यजिज्ञपत् / अस्ति त्रिशिखरो राजा दिवस्ति|लकपत्तने // 27 // विद्युद्वगं मत्पितरं सूर्पकाय स्वमूनवे / ययाचे मदनवेगां सुतामेतां सगौरवात् / / 28 // पित्रा न दत्ता सा दैवाच्चारणपिस्तु तद्वरम् / पृष्टोऽशंसद्वसुदेवं हरिवंशैकमौक्तिकम् // 29 // चण्डवेगस्य जान्हव्यां विद्या साधयतोऽमुना। विद्यासिद्धिं स्कन्ध| पातेऽशंसि चास्योपलक्षणम् // 30 // विद्युद्वेगेन तज्ज्ञात्वा विशेषात्स निराकृतः / क्रुद्धो बद्धवाऽनयत्तं चागत्य त्रिशिखरो बली // 31 // तत्वं मदनवेगायाः स्वप्रियाया वरं खयम् / दत्तं स्मृत्वा मोचयाशु श्वशुरं मां च मानय // 32 // असद्वशादिकन्दस्य पुलस्त्योऽभून्नमः सुतः / अरिञ्जयपुरस्वामी मेघनादस्तदन्वये // 33 // सुभूमश्चक्रवर्ती च जामाताऽस्य प्रदत्तवान् / ब्राह्माग्नेयादिदिव्यास्त्रैः सह श्रेणिद्वयेशताम् // 34 // रावणस्तस्य वंशेऽभूभृपस्तत्सहजस्य तु / कुले विभीषणस्यासीद् विद्युद्वेगः पिता मम // 35 // क्रमागतं तमस्त्रौघं गृहाण स्फूर्तिमानऽयम् / महाभाग्यस्य ते भावी निर्भाग्याणां हि निःफलः // 36 / / इत्युक्त्वा दधिमुखेन दत्तो दिव्यास्त्रसञ्चयः / विधिना शौरिणाऽसाधि पुण्यैरुत्तरसाधकैः // 37 // आकये दत्ता मदनवेगां तां भूमिचारिणे / श्रितक्रोधाद्रिशिखरोऽभ्यागात्त्रिशिखरो युधे // 38 // खेचरैटौंकितं स्वर्णमुखं मायामयं रथम् / आरुह्य युयुधे दुन्दुयुतो दधिमुखादिभिः॥३९॥ शिरस्खिशिखरस्याऽजलावमैन्द्रेणसोऽलुनात् / अत्रेण तत्पुरे गत्वा श्वशुरं च व्यमोचयत् // 40 // पुनरेत्य श्वशुरस्य दुन्दोविलसतः पुरे। पुत्रो मदनवेगायामनाधृष्टिरजायत // 41 // गीयमानः खेचरीभिः सानुरागाभिरन्यदा / यात्रा स सिद्धचैत्येषु व्यधाद् विद्याधरैर्वृतः // 42 // तव्यावृत्तश्च मदनवेगां // 197 // RAE BH-28463-12-