________________ श्रीअमम जिनचरित्रम् प्रपञ्चतो वेगवत्या वृतो दुन्दुः // 196 // व्यलोकयत् / ऊचे च विप्रियात् कस्मादऽदृश्याऽभूत् व्यहं वद // 5 // साऽप्यवादीत् खदर्थेऽहं विशिष्टं नियमं व्यधाम् / अस्थां दिन- |त्रयं प्राणेश्वर ! मौनव्रतेन च // 6 // अचिंत्वैतां देवतां वं पुनः पाणिं गृहाण मे / विधिरेप व्रते ह्यस्मिन्नित्यकापति तथैव सः // 7 // | देव्याः शेपेयमित्युक्त्वा पाययित्वा च वारुणीम् / वसुदेवस्तया रेमे कान्दपिक्येव निर्जरः // 8 // रात्रौ सुप्तस्तया सार्द्ध शौरिनिंद्रा त्यये पुनः / तामन्यरूपामालोक्य प्रोचे खं कासि वणिनी // 9 // सा चख्यौ दक्षिणश्रेणौ सुवर्णाभपुरेऽभवत् / चित्रांगो नाम | नाम भूपालस्तस्यांगारवती प्रिया // 10 // तयोर्मानसवेगाख्यः पुत्रोऽभूत् पुत्रिकात्वहम् / नाम्ना वेगवती स्वामिन् कौमारव्रतशालिनी | // 11 // राज्यं पुत्राय चित्रांगो दत्त्वा जगृहिवान्त्रतम् / सोमश्रीस्त्वत्प्रियाऽहारि तेन मद्वन्धुना हठात् // 12 // भोगार्थ मन्मुखेनोक्ता पटुभिस्तेन चाटुभिः / प्रपेदे त्वत्प्रिया बेतन सतीमौलिमण्डनम् // 13 / / परं सा मां सखी मत्वा त्वामानेतुं समादिशत् / अवागताऽभवं किन्तु त्वयि दृष्टे स्मरातुरा // 14 // ततो मया वृपस्यन्त्या विदधे सुभगेदृशम् / एवं मे कुलजायास्वमभूभर्ता विवाहतः॥१५ वीक्ष्य वेगवतीं प्रातर्लोका व्यस्मयताऽधिकम् / सोमश्रीहरणं साऽऽख्यत्तस्य शौरेनिदेशतः // 16 // सम्भोगखिन्नः सुप्तोऽसौ निश्यन्येद्युस्तया सह / बलान्मानसवेगेनाऽहारि मानसवेगिना // 17 // ज्ञात्वा स खेचरो जघ्ने वसुदेवेन मुष्टिना / स घातपीडितोऽमुश्चत् | |क्षणात्तं जान्हवीजले // 18 // तदन्तश्चण्डवेगस्य विद्यां साधयतोऽपतत् / विद्यासिद्धिकरः स्कन्धे वाणेयो व्योमगामिनः // 19 // भवत्प्रभावान्मे सिद्धा विद्या तत्ते ददामि किं ? / इत्यूचुपोऽस्मादादत्त दुन्दुविंद्यां खगामिनीम् // 20 // चण्डवेगे गते शौरिद्वारे कनख-| लस्य च / ददृशे साधयन् विद्यां तामेकायतमानसः // 21 // विद्याधर्या विद्युद्वेगपुन्या मदनवेगया / हवा स्मरातया निन्ये वैताढ्याद्रेश्च मृर्द्धनि // 22 // युग्मम् // उद्याने पुष्पशयने मुक्त्वा तं पुष्पकेतुवत् / सा विवेशऽमृतधाराभिधे तु नगरे स्वयम् // 23 // दधिमुख सर्ग-५ // 196 //