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________________ श्रीअमम // 194 // मुष्ठयाऽताडयत्तराम् // 67 // सरस्तटे पतित्वा च स हस्ती खेचरोऽभवत् / नीलकण्ठो नीलयशोलिप्सुर्यः प्राग् जितो युधि // 68 // पुरे जिनसालगुहाख्ये च दुन्दुम्यिन् ययौ ततः / तत्राऽशिपद् धनुर्विद्या भाग्यसेनं नरेश्वरम् // 69 / / भाग्यसेनं योधयितु मेघासनस्तद चरित्रम् ग्रजः / तत्र प्राप्तः पराजिग्ये वसुदेवेन दोष्मता // 70 // पद्मावती भाग्यसेनोऽश्वसेनां तु वितीर्णवान् / मेघसेनो नृपस्तस्मै खां पुत्री सालगुहपुरे पारितोषिकम् // 7 // प्रेयस्योराग्रहाचा तपोः सिला चिराय सः। जगाम भद्रिले पुरे मलयो विभूपणे // 72 // स तत्र पुंड्रराज पद्मावती मेघसेनौ स्यापुत्रमृतिमीयुपः। कन्यानुरुपामौषध्या पुंड्राख्यां राज्यपालिनीम् // 73 // विलोक्य स्त्रीति विज्ञायोपयेमे चानुरागिणीम् / पुंड्राख्य परिणीयैस्तनयस्तस्यामभृद् राज्येऽभ्यपेचि च // 74 // युग्मम् // अंगारकस्तत्र रात्रौ वैरी विद्याधरोऽधमः / हृत्वा हंसापदेशेन गंगायां दुन्दु- लावर्द्धनपुरे मक्षिपत् // 75 // स ती| तां प्रगेऽगच्छदिलावर्द्धनपत्तनम् / उपाविक्षत्सार्थवाहहढे तत्र तदाग्रहात् // 73 // स्वर्णलक्षं तस्य लाभे तदा- रत्नवतीपऽभूत्तत्प्रभावतः / चमत्कृतस्तेन सोऽपि दुन्दुमाभापताऽऽदरात् / / 77 // आरोप्याऽथ शिबिकायां सार्थवाहो निजे गृहे / तं नीत्वा |रिणयनम् निजपुत्र्या च रत्नवत्योदवायत् // 78 // पुरे महापुरे श्रुत्वाऽन्येद्युरिन्द्रमहोत्सवम् / स दिव्यं रथमारुह्य श्वशुरेण सहाऽयमत् // 79 // बहिः परिसरे तस्य प्रासादान् वीक्ष्य नूतनान् / सोऽनाक्षीत् श्वशुरं किन्नु पुरमेतद् द्वितीयकम् / / 80 // आचख्यौ श्वशुरः सोमदत्तोऽस्त्यत्र नरेश्वरः / वक्त्र श्रीव्यस्तसोमश्रीः सोमश्रीस्तु तदङ्गजा // 81 // स्वयंवरकृते तस्याः स प्रासादान् व्यदीधपत् / तदपाटवतो भूपा, सर्ग-५ नाहूतान् व्यसृजत्पुनः / / 82 // आकर्येवमुपेत्येन्द्रस्तम्भं शौरिननाम तम् / नृपावरोधः प्राक् प्राप्तश्चाचलत् कृतपूजनः // 83 // नृपद्विपश्च तत्रागाद् भक्त्वाऽऽलानं मदात्तदा / रथादऽपातयत् पृथ्व्यां राजकन्यां करेण च // 84 // अशरण्यां शरण्येच्छं तां दीनां वीक्ष्य // 19 // यादवः / अतर्जयत्पुरोभूय द्विपं तं प्रतिहारवत् // 85 / क्रोधादऽधावत त्यक्त्वा कन्यां तां स च शौरये / महाबलेन तेनापि विदधे |
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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