________________ श्रीअमम // 192 // हतः यत् / सोऽप्यूचे गृह्यतामेषा त्रिजगचित्रमोहिनी // 30 // इयं साधयितुं सायमारद्धाऽभ्युदये वः। सिध्यत्यनेकविता तु तत्सहायं जिनविचिन्तय // 31 // वैदेशिकस्य कः स्यान्मे सखेत्यूचुपि यादवे / सोऽवदत्तेऽस्म्यहं प्रातः सहायः प्रियया सह // 32 // तेनेत्युत्सा-| चरित्रम् हितो विद्यां गृहीत्वा विधिनाऽजपत् / हृतः शौरिः शिविकया दाम्भिकेनेन्द्रशर्मणा // 33 // स नीयमानः प्रागुक्तमुपसर्ग वितर्कयन् / | दुन्दुना विद्यामेवाजपत्सावधानो विश्वस्तमानराः // 34 // विभातायां विभावर्यां तां मायां मायिकस्य सः / निश्चित्य शिविका त्यक्त्वा पला जित्वा सो दासराक्षसो यत बलाद्यतः // 35 // धावत्यनुपदं चन्द्रशमणि क्रूरकर्मणि / तृणशोषं सन्निवेशं ययौ सायं द्रुतं व्रजन् // 36 / / बहिर्देवगृहे तत्र सुप्तो रात्रौ स रक्षसा। उपेत्योत्थापितः श्रान्तोऽप्यश्रान्तभुजविक्रमः // 37 // केशाकेशि मुष्ठामुष्ठि बाहूबाहवि चाधिकम् / कृत्वा चिरायतं. प्रौढबलमप्यबलं तथा // 38 // नरादं दमयित्वाऽऽशु बस्तवद् व्यस्तशक्तिकम् / पोतपाशेन संयम्य कण्ठपीठे हठेन च // 39 // हस्तेनास्फाल्य हस्तीव वसुदेवः क्षमातले / कृतान्तस्याऽतिथीचक्रे गर्जितर्जितदिग्गजः॥४०॥ च० क०॥ निशाचरस्य तमसो नाशनेभ्युदिते खौ। लोकस्तत्रागतोऽपश्यद् यादवं तं च राक्षसम् // 41 // तुष्टस्तुष्टाव शौरिं च कौशल्योद्धरणोद्यतः। हत्वाऽद्य राक्षसं रामोऽभूस्वं विश्वाभयप्रदः // 42 // युग्मम् // प्रावेशि सन्निवेशान्तः सोऽथारोप्य रथे जनैः / वाद्यमानैः पञ्चशब्दैः परिणीयागतो | यथा // 43 // कन्याशतानि पश्चाऽस्मै तत्रेत्याः स्वान्यऽढोकयन् / स तान् निवार्य प्राग् रक्षोवृत्तं पप्रच्छ मूलतः॥४४॥ तेष्वेकोs सर्ग-५ कथयद् वृद्धः कलिंगक्षोणिभूषणे / श्रीकाश्चनपुरे राजा जितशत्रुः पुराऽभवत् // 45 // अवीवदत्स्वदेशान्तरऽमारिपटहानऽसौ। कोद| ण्डेष्वेव तद्राज्ये जीवाकृष्टिरभृद् यदि // 46 // सोदासस्तस्य पुत्रस्तु मांसलुब्धः सदाऽभवत् / नाश्नान्मांसं विना धिग् दुःप्रकृति // 192 // | कुलजेष्वपि // 47 // तेनैककेकिनो मांसं प्रत्यहं याचितः पिता / तदनिष्टमपि प्रत्यपादि मंत्रिवरैचलात // 48 //