________________ मेपस्य श्रीअमम | रपि नो कर्मणां पुनः॥४२॥ आत्तिं त्यक्त्वा तदादत्स्व वत्साऽतुच्छं निजात्मनः / पाथेयं परलोकस्य पथे पथिकताजुपः॥४३॥ जिनअर्हन् देवः सद्गुणास्ते साधवो गुरवोऽपि च / त्रैलोक्याभयदानैकशत्री धम्मो जिनोदितः॥४४॥ अर्हत्सिद्धसाधुधाः शरणं | चरित्रम् // 182 / / | वत्स ! तेऽधुना / दुःकृतानि च गर्हस्व सुकृतान्यनुमोदय // 45 // प्रयच्छ सर्वसत्त्वेभ्यस्त मिथ्यादुःकृतं हृदा / कपायान् विषया-| रक्षाऽशक्ती कारित न्मुश्च देहादिममतामपि // 46 // अष्टादशमहापापस्थानानि त्यज सर्वथा / द्वादशाऽनित्यताद्याश्च मुहुर्भावय भावनाः॥४७॥ विशेष-| निर्यापनया | तोऽपि किञ्चास्मिन् रुद्रे मृत्युप्रदेऽपि मा / कार्पोरीपदऽपि द्वेष कर्मणां प्रतिहस्तके // 48 // तन्मेषोऽपि सोन्मेपः प्रपेदे शिरसाऽखिलम् / तद्दत्तं च नमस्कारं सुधासारं पपौ मुदा // 49 / / इत्थं कृतान्त्यकर्त्तव्यः स बस्तः शस्तमानसः / निहतो रुद्रदत्तेन दिवि देव-|| | स्वर्गतिः त्वमासदत् // 50 // ततः प्रविष्टौ मेपांगभस्त्रांतस्तौ क्षुरीधरौ। भारुण्डाभ्यामुढतौ च गच्छयां स्वर्णभूमिकाम् // 51 // जिघृक्षिता *चारुदत्तभस्त्राऽन्येनाथ वर्त्मनि / एकामिपेच्छया लग्नं युद्धं भारुण्डयोर्द्वयोः॥५२।। तयोस्तव्यग्रयोोम्नः सरस्येकत्र साऽपतत् / aai भस्वा तां च सुधीर्या चारुदत्तो व्यदारयत् // 53 // अगाधमपि तद्वारि विपत्कष्टमिव द्रुतम् / उत्तीर्य धीवरः स स्वभुजाभ्यामथ * निर्ययौ // 54 // विश्रम्य प्रस्थितः सोऽग्रे पाप धोरां महाटवीम् / या मृगारातिसंचारैभैरवीव भयंकरा // 55 // संसृताविव तस्यां। * स दुस्तरायां परिभ्रमन् / मनुष्यजन्मवत् प्राप शैलमेकं कथञ्चन // 56 // आरोहक इवाऽरोहत्तं स द्विपमिवोन्नतम् / पार्श्वयोर्यस्य || | सर्ग-५ * सूर्येन्दु सांशू घंटाद्वयश्रियौ / / 57 // चारुदत्तेन तत्रैक्षि कायोत्सर्गस्थितो मुनिः / सानन्देन ववन्दे च तीर्थ पुण्यहि लभ्यते // 58 // | दत्वा निजाशिप तेन स प्रोच्यत ससम्भ्रमम् / कथं ? भोश्चारुदत्ताऽस्यां दुर्गभूमौ त्वमागमः॥५९॥ विना विहंगमान् विद्याधरान् // 182 // | देवासुरानपि / मर्त्यस्य न प्रचारोऽस्यां तिरश्चो वा कथञ्चन // 60 // केयं महाटवी घोरा व वा गर्भेश्वरो भवान् / सर्वथा गहनान्येव