________________ श्रीअमम // 18 // | वीद् भ्रातर्निगमौपयिकं विना। वेदिकोत्संगपातेऽपि मृत एवाऽस्मि निश्चितम् // 5 // सोऽकारणसुहृत्प्रोचे शृणूपायं स्वनिगमे / कूपे- जिन श्रेति रसं पातुं महागोधा यदा तदा // 6 // तत्पुच्छमवलम्ब्याशु निगन्तव्यं त्वया बहिः / तदागमं प्रतीक्षस्व खं निमील्य विलोचने | चरित्रम् // 7 // युग्मम् / / प्रीतस्तद्वचसा भानुसूनुः पश्चनमस्कृतिम् / स्मरन्नस्थात्सुखं तत्र स च पुमांस्तदा मृतः // 8 // श्रुखा भयंकरं ध्वानं स ज्ञाते पप्रश्चे रसकूपानिविभायाऽन्यदा क्षणम् / स्मृत्वा तस्य पपो गोधागमनं ज्ञातवान् पुनः॥९॥ आगवाया रसं पीत्वा प्यावृपाया महौजसः। लमः | गेमने पुच्छे स गोधायाः कराभ्यां निविडग्रहः // 10 // कष्टेन घृष्यमानाङ्गः कूपात्तस्माद् बहिर्ययौ / गोपुच्छलग्नो गोपाल इव गोधान्महा |स्वर्णभूमि द्रहात // 11 // युग्मम् // मुक्तपुच्छो मूच्छितश्चाऽपतत्पृथ्वीतले सच / मृदुना वनवातेन पुनश्चैतन्यमासदत् // 12 // ततोऽग्रे प्रस्थितो गमनम् भ्राम्यन्नरण्यमहिषेण सः। प्रारेभे मूर्द्धगे चक्रे विधावीशोऽपि किं ? सुखी ? // 13 // सोऽथारुक्षच्छिलामुच्चामुत्प्लुत्य कपिवजवात् / कुपितस्तुण्डशृंगेणाऽताडयत्तां च सैरिभः // 14 // कासरोऽपि सरोषेणाऽजगरेण गरीयसा / दोर्दण्डेन यमस्येव प्रारभ्यत निशुम्भितुम् // 15 / / तयोः सबलयोयुद्धव्यग्रयो नुनन्दनः / प्राणत्राणार्थमुत्तीर्य पलायामासिवान् द्रुतम् // 16 // पर्यटन् स ययौ ग्राममट-1* | वीप्रान्तवत्तिनम् / प्रैक्षि मातुलमित्रेण रुद्रदत्तेन तत्र च // 17 // तेनाऽयं पालितच्छिन्नप्ररूढ इव पादपः / पुनर्नवोऽभवद् विष्वक् | प्रोल्लसद्दलडम्बरः // 18 // सोऽभाणि रुद्रदत्तेनाऽन्यदा श्रीर्वत्स! लभ्यते / देहक्लेशसहैरेव परुपैः सुभटैरिव // 19 / / तदेहि स्वर्ण सर्ग-५ भूमीति द्वीपं मध्येऽब्धि विस्तृतम् / यावः स एव यत्खानिद्रव्यस्य व्यवसायिनाम् // 20 // युग्मम् / / स तद्वाक्यमुरीकृत्याऽलक्त| कादिकमल्पकम् / आदाय पण्यं स्वर्णक्ष्मां प्रति तेन सहाऽचलत् // 21 // इषुवेगवतीं चाध्वन्युत्तीर्याऽम्भोधिवल्लभाम् / गिरिकूटस्य | // 18 // | मध्येन तौ वेत्रवनमीयतुः // 22 / / क्रमाद् ढंकणदेशं च तौ प्राप्तौ यत्र वाहनैः / परैरगम्यः प्रख्यातो मागोऽस्त्यजपथाख्यया // 23 //