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________________ श्रीअमम जिन भवत् / / 69 // दीर्घावोला भोजनाद्यः सत्कृतः पुत्रायमुनाद्वीपनामनि // 178 // चरित्रम् विदेशे धूर्तपरिब्राजक मेल.पक: स्वमातुलेन श्वसुरीभूतेन सह सोऽगमत् / उशीरावर्तनगरे कसं च समग्रहीत् // 67 // युग्मम् // व्रजतोऽस्य ताम्रलिप्त्यां कर्पासो | | वनवन्हिना / दग्धोऽथ मातुलेनापि त्यक्तो निर्भाग्य इत्यसौ // 68 | एकोऽपि चारुदत्तोऽश्वाधिरूढः पश्चिमां प्रति / चचाल दैवात्तुः | रंगे मृते पादचरोऽभवत् / / 69 / / दीर्घावोल्लङ्घनश्रान्तः क्षुत्तृष्णाशुष्कतालुकः / प्रियङ्गुनगरे प्राप्तोऽपरान्हे चत्वरे भ्रमन् // 70 // दैवात्सुरेन्द्रदत्तेन पितृमित्रण वीक्ष्य सः / गृहे नीतो भोजनाद्यैः सत्कृतः पुत्रवस्थितः / / 71 // तेनायं वार्यमाणोऽपि द्रव्यलक्षं कुतश्चन / / | आदाय वणिजो वृद्ध्या वाद्धौ पोतेन जग्मिवान् // 72 // प्राप्तस्तत्रान्तरद्वीपे यमुनाद्वीपनामनि / यातायातैनगरेषु भाण्डानां क्रयविक्रयैः // 73 // उपार्जयत्स्वर्णकोटीरष्टावेकोऽप्यसौ ततः। हृष्टोऽचलत्स्वदेशायाऽपुण्यैर्यानमभज्यत // 7 // युग्मम् / / अवाप्य फलकं देवात्तेनाब्धि सप्तभिर्दिनः / स तीर्थोदुम्बरावतीवेलाख्य तटमासदत् // 75 // वपुर्नदीजलैस्तत्र प्रक्षाल्याने वजन्नयम् / कथमप्याप्तवान् राजपुरोपान्तस्थमाश्रमम् // 76 ।।दृष्टः परिबाद तेनाऽत्र नाम्ना दिनकरप्रभः / तस्योपचारतुष्टेन स्ववृत्तान्तो न्यवेदि च // 77 / / तेनो|ल्लाघीकृतोऽन्येयुः स प्रोचे वत्स! चेद् भवान् / धनार्थी बहुभिः तत्किमुपायैः खिद्यते परैः // 78 // आगच्छतु मया सार्द्धममिन्नेव | शिलोचये / सिद्धमेव यथा कोटिवेधिन रसमर्पये // 79 // युग्मम् / / असौ कल्पद्रुवदायी स्वर्णकोटीरनेकशः / कुर्यास्त्वं सिद्धवत्ताभि| स्त्यागभोगान् यथारुचि // 8 // इत्युक्त्वा मुदितश्चारुदत्तस्तेन सहाञ्चलत् / गतौ तावटवीमात्तमश्चिकातुम्बशम्बलौ॥८१|| भ्राम्य न्तीतस्ततो यत्र साधकाश्चातका इव / घनेषु वातिकेन्द्रेषु चाटुकारा रसार्थिनः // 82 // तदन्तर्जग्मतुः शैलमेखलास्थं महाबिलम् / बहु* यत्रशिलाकीण दुर्गपातालसंज्ञकम् // 83 / / द्वारं तस्य यमस्येव मुख विश्वभयंकरम् / मंत्रेणोद्घाटयामास धूर्तराजस्त्रिदण्डिकः // 84 // | ताभ्यां साहसिकाभ्यां च प्रविष्टाभ्यां तदन्तरे / रसाधारश्चतुर्हस्तविस्तारः प्रापि कूपकः // 85 // चारुदत्तः प्रमुदितः प्रोक्तस्तेनेति सर्ग-५ // 178||
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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