SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीअमम जिन // 176 // चरित्रम् चारुदत्तस्य वेश्यागृहे निक्षेपः गसेनायाः स पुत्र्याः पणयोषितः // 30 // गृहे वसन्तसेनायाः सेनायाः कामभृभुजः। योगिनीवत् ख्यातिलाभसुभगायास्तयाऽन्यदा // 31 // युग्मम् // कृतसंकेतया पूर्व बाढमावणं वेश्यया / स नीतः पटवत् स्वस्मिन् नील्येव दृढरागताम् // 32 // तदासक्तं च तं दक्षा ज्ञात्वा ललितगोष्ठ्यपि / तेस्तैमिषैरपसृत्याऽशंसन् भानुमुभ्रद्रयोः।३३।। ताभ्यां दत्वाऽथ हृष्टाभ्यां यथेच्छं पारितोषिकम् / सा च्यसजि पिवणामध्यहो कामैकबुद्धिता // 34 // कलिंगसेनाप्यशियदेकान्ते तनयामिति / नत्से ! कलासु दक्षाऽसि तासां तत्वं पुनः शृणु // 35 // पक्षीन्द्रमृतिभिरिव स्वर्णपक्षपरिग्रहात् / भुजंगजातिभक्ष्यैव वेश्याभिर्वश्यतां गता // 36 // नव्या जलौकसो वेश्या | निर्व्याधेः पुरुषांगतः / कर्षन्ति प्राणदं सारं सुखयन्त्यो मुखेन यत् / / 37 / / शिष्टा वसन्तसेनैवं मात्रा मात्राधिकं ततः। सन्ध्येव राग क्षणिकमपि स्थिरतरं मुहुः // 38 // व्यञ्जयन्ती चारुदत्ताद्दत्ताः पितृभिराददे / व्याजैर्नवनवैनित्यमुत्तमणैव वर्द्धितैः // 39 // वर्षे- | दिशभिः स्वर्णकोटीः षोडश लीलया / कविवजानते नार्थक्षयं रसवशान्नराः // 40 // त्रि० वि० // पितरौ चारुदत्तस्य परलोकं | | तदा गतौ / न तेन विवेदाते तु वेश्याव्यसनिना हहा // 41 // ताभ्यामुक्ता मृत्युकाले वमित्रवती ततः / कुलीना प्राहिणोद् भा नायितं स्तोकशो धनम् // 42 // कलिंगसेनादिष्टायाश्चेट्या द्रव्यार्थमन्यदा। हस्ते मित्रवती खांगादुत्तार्यालंकृतीः स्वयम् // 43 // | कर्तनोपकरणानि कर्पासस्याऽखिलानि च। आरोप्य पटलिकायामार्पयद् विकसन्मुखी // 44 // युग्मम् / / तद्दर्शनाद् विनिश्चित्य | द्रव्यान्तं कुट्टनी हृदि / वध्वोपकरुणा प्रत्यापेयत्तान्येव देवतः॥४५।। ऊचे वसन्तसेनां च जाते! जातधनक्षयः। व्युत्सृज्यतां चारु दत्तः फेलाहेलायितादयम् // 46 // हित्वा हिमाद्रिं हेमाद्रिं सेवन्ते यत्सुरा अपि / तद्वाच्यं किं पणस्त्रीणामर्थलुब्धैकचेतसाम् // 47 // | तस्यां गुणानुरागेणाऽनिच्छन्त्यामथ कुट्टनी। दुष्टाश्चेटीः समादिक्षद् वैशिकाचारकोविदाः // 48 // ताभिश्च भित्तिसंस्कारमिपादुप सर्ग-५ // 176 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy