________________ श्रीअमम जिनचरित्रम् // 174 // चारुदत्तकथित गन्धर्वसेनावृत्तान्त: उपाध्यायौ च सुग्रीवयशोग्रीवौ वितेरतुः / तस्मै श्यामाविजयाख्ये पुन्यौ सद्गुणतोषितौ // 93 // कियत्यपि गते काले श्रेष्ठी दुन्दुम| दोऽवदत् / गन्धर्वसेनावृत्तान्तमायुष्मन् ! मूलतः शृणु / / 94 // ___अस्यामेव पुरि पुरा महेभ्यो भानुरित्यभूत् / असंख्यवसुना येन जितो भानुरऽगानभः // 95 / / तस्य प्रिया सुभद्राख्या भद्राभक्तिरजायत / स्वरूपशीलयोर्यव भेजे दर्पणतां स्वयम् // 16 // चित्रं तौ सुगतौ नव्यौ क्षणभंगविदाविह। सन्तानानुभवाभावात् प्राप्तौ सिद्धार्थतां नहि // 97 // वरं स्त्रीपुंसयोब्रह्मसेवनं नतु मैथुनम् / यो फलाभावतो निन्द्याववकेशिद्रुमाविव // 98 // अन्यदा चार| णमुनिआनी ताभ्यामपृच्छयत / भाविनं पुत्रमाख्याय सोऽप्यन्यत्र विजहिवान् // 99 / / जज्ञे च नन्दनः क्लप्तानन्दनः समये तयोः। | वर्द्धनाद्युत्सवो गेहे वंशवृद्ध्या सहाऽभवत् // 40 // पितृभ्यां गोत्रज लोकं सम्मान्योत्सवपूर्वकम् / द्वादशाहे चारुदत्त इति नामास्य निर्ममे / / 1 / / स धात्रीपालितः प्राप वृद्धिमुद्यानशाखिवत / क्रमात स्कन्धप्रवालश्रीपुण्यं तारुण्यमासदत् // 2 // क्रीडन् मित्रैः सहान्येयुः स नद्याः सैकते गतः। सुकवेरिव कस्यापि पदमुद्रामुदैवत // 3 // प्रेक्ष्य तद्वामतः श्रोणिभरमग्नां पदावलीम् / तेन तस्यापि | निश्चिक्ये कामिनी सहगामिनी // 4 // गच्छंस्तदाऽग्रतोऽन्वेष्टेवाऽद्राक्षीत्कदलीगृहम् / तदन्तः पुष्पशय्यां च फलकासी तदन्तिके | // 5 // तदऽदूरे लोहकील?मेण सह कीलितम् / नरमेकमुदेक्षिष्ट शिष्टः सोऽथ कृपाधीः // 6 // तन्मुक्त्युपायचिन्ताः कोशान्तस्तदसेरसौ / दक्षो निक्षिप्तमद्राक्षीदौषधीवलयत्रयम् // 7 // औषधीनामचिन्त्यो हि प्रभाव इति तास्वथ / एकामुघृष्य लिप्तांगं निःकी लोऽकारि तेन सः / / 8 / / चक्रे द्वितीयया रूढवणः सोऽथ तृतीयया / सचेतनो नरो वैद्येनेव सम्प्राप्तपाटवः // 9 // युग्मम् / स पुरः | चारुदत्तस्य प्राणदानोपकारिणः / मूलतः सोदरस्येव निजं वृत्तान्तमाख्यत // 10 // महेन्द्रविक्रमस्याहं वैताढ्ये शिवमन्दिरे / सुतोऽ सर्ग-५ // 174||