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________________ जिनचरित्रम् महापद्मादि | पार्थनायां स्वाभाविकरूपकरणम् श्रीअमम- निक्षिप्य नमुचिं भूमौ मध्ये प्राक्पश्चिमाम्बुधः / मुनिर्विष्णुर्जगत्पूज्यपादः पादमदात्तदा // 55 / / ज्ञात्वा पद्मोऽपि सम्भ्रान्तस्तं वृत्ता |न्तमुपेत्य च / भीतः भीतः स्वप्रमादात् कम्पमानाङ्गयष्टिकः // 56 // गुणैर्गरिष्ठं तं ज्येष्ठं महर्षि बान्धवं निजम् / प्रणम्य प्राञ्जलिने॥१७२।। बजलैः प्रक्षाल्य तत्पदौ // 57 / / ऊचे लोकोत्तरगुणप्रभो ! विजयिनि त्वयि / अस्ति मे मनसाऽद्यापि तातः पद्मोत्तरः स्वयम् // 58 // | त्रि०वि०॥ श्रीसंघस्य गुरूणां च स्वामिन्नहमवेदिषम् / आशातनामधमेन क्रियमाणां न मंत्रिणा // 59|| ज्ञापितोऽस्मि च नो केनाप्यपराधी तथाप्यहम् / अयं कुभृत्यो मे भृत्यदोषात्स्वामी हि दण्ड्यते // 60 // तथा ख मे प्रभुभृत्यस्तव चास्म्यहमप्यतः / गृह्यसे | मेऽपराधेन तत्तं क्षाम्य क्षमानिधे ! // 61 // कुमत्रिणोऽस्यापराधात्प्राणान्तिकतुलामिदम् / आरोहत् त्रिजगत्तेन रक्ष रक्ष दयानिधे ! | // 62 // सुरासुरनराधीशाः संघश्च त्रिजगत्पतिः। एवं प्राजलयोऽन्येऽपि तं महर्षिमसान्त्वयन् // 63 / / मुनिर्यावन्न शुश्राव स काष्टी | लग्नयोगिवत् / तावत्तस्य पदोः स्पर्श भक्त्या सर्वेऽपि चक्रिरे // 64 // तेनायमुपयुक्तोऽग्रे स्थित भ्रातरमैक्षत / प्रसादनपरं संघमपि del| युक्तं सुरासुरः // 65 // सोऽचिन्तयन्मुनिश्चैवं संघः कारुण्यपुण्यधीः। चाटुकारश्च मे भ्राता सुराद्याश्च भयातुराः // 66 // प्रसादयन्ति | मां क्रोधयोधसंवृत्तयेऽखिलाः / पूज्यः संघः पद्ममुख्याश्चानुकम्पास्पदं मम // 67 // मुनीश्वरो विचिन्त्यैवं नृपादिप्रार्थनावशात् / कवीश्वर इव ग्रन्थं लक्षमानं वपुर्निजम् // 68 / / संक्षिप्य शक्तिमानेकपदेनाल्पं विनिर्ममे / सुहृदां हृदये तन्वन्नलं कौतूहलं तदा // 69 // युग्मम् / / पद्मायैः शिष्यवल्लुप्ते प्रत्यये वृद्धिकारणे / स भूतपूर्वां प्रकृति मुनिः शब्द इवाददे // 70 // कालुष्यहेतोर्वेलाया विश्वक्षोभ कृतो गमे / बभार विष्णुकुमारः समुद्रः स्वस्थतां पुनः // 71 // मुमुचे नमुचिर्जीवन् विष्णुना क्ष्माभुजा पुनः / निरवास्यऽधमः bell संघस्योपरोधाद्दयानिधेः // 72 / / त्रिभिः क्रमैस्तैः श्रीविष्णुस्तदादिभुवनत्रये / त्रिविक्रमाख्यया ख्याति स ययावच्युतो मुनिः।।७३।। सग-५ // 172 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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