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________________ श्रीअमम- श्रुत्योः स्वचरित्रामृतोक्षणैः // 79 // विजेता नमुचेः सूरिः सुव्रतःसुव्रतार्हतः। शिष्यस्तदागमत्तत्र साधुवृन्दारकैवृतः॥४०॥ सर्वा | | जिन सपरिवारः श्रीमान्पद्मोत्तरो नृपः / उपेत्य तमवन्दिष्ट विशिष्टप्रीतिरीतिभृत् // 8 // सोऽस्मै संसारकान्तारभ्रमश्रमोद्धृतिक्षमाम् / देशनां | चरित्रम् // 168 // सरसीरूपां नीरागश्रियमादिशत् // 82 / / तयाऽऽविष्कृतवैराग्यो गुरुं विज्ञप्तवान्नृपः / न्यस्य राज्ये सुतं यावदेमि गम्यं न तावता चक्रवत्ये|८३॥ अप्रमत्तेन भवता भाव्यमित्येष सरिणा। उक्तः प्रणम्य तं गत्वा मुदितो निजमन्दिरम् !!84 // आहूय प्रकृतीविष्णुकुमारं | भिषेके || पद्मस्य ज्येष्ठनन्दनम् / उवाच भीतिकृद् वत्स ! भवो भोगैरिहांगिनाम् / / 85 // तदेतस्माद् गुरोर्दीक्षां प्रत्यक्षां जांगुलीमिव / आदास्ये सि मातृमनोद्धिरस्याश्च स्याद्राज्यत्यागतो ध्रुवम् // 86 // त्रि० वि०॥ ऊचे विष्णुन यूयं मे वत्सला यच्छलादतः / स्वानिष्टस्यार्पयथ मां भवस्य | स्थपूरणं भयकारिणः // 87 // राज्येनालमतस्तात ! भवदिष्टपथाध्वगः। निश्चयेन भविष्यामि पुत्रो वः स्यामहं न किम् ? // 88 // राज्ञाऽथ पद्मोत्तर महापद्मः समाहूय निवेद्य च / आकूतं स्वस्य विष्णोश्च राज्यार्थेऽभ्यार्थि साग्रहम् // 89 // आज्ञा पितुरनुल्लंध्येत्यर्थापच्या समागतम् / विष्णुकुमाराज्यांगीकारमाचख्यौ स मौनेनेव नीतिवित् // 90 // अकारि चक्रवर्तित्वाभिषेकेण समं ततः। राज्याभिषेकः पद्मस्य पद्मोत्तरमही नरयोः दीक्षा | भुजा // 91 // कृतोत्सवो महापद्मचक्रिणा सुव्रतान्तिके / व्रतं विष्णुकुमारेण सार्दू पद्मोत्तरोऽग्रहीत् // 92 // पत्रं केतुमिपाद्दत्वा स्वसर्गा*द्भुतगर्वतः / भास्वद्रथं पूर्वपक्षीकुर्वाणं किंकिणिरवैः / / 93 // जैन निर्मापितं मात्रा चक्रवर्ती रथं पुरे। भ्रमयित्वा कारयित्वा तस्य * यात्रा महोत्सवात् // 14 // अभ्यर्च्य मातरं ज्वाला सुवर्णकुसुमादिभिः। उवाच प्राञ्जलिः किं ? ते करोमि प्रियमादिशत् // 95 // त्रि०वि०॥ साऽवादीद् देव ! किमितोऽप्यादेष्टव्यं प्रियं मम / यत्त्वया धर्मवीरेणाऽभूवं पूर्णमनोरथा // 96 // दानवीरान् युद्धवीरान् | // 16 // * सूयन्ते कति न स्त्रियः / धर्मवीरप्रसूः क्वापि काचित्पुण्यवती यदि // 97 // तत्रैवास्थुः पुरे राजाग्रहात् सुव्रतसूरयः / रथयात्रावधि सर्ग-५
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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