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________________ // 159 // -26 ORRB-RRB मस्तस्थौ तत्रैव निशि चान्यदा। सुप्तस्तदन्तिके जहेऽङ्गारकेण विरोधिना // 11 // दध्यौ जागरितः को मे हत्तैत्यंगारकं ततः। वीक्ष्योपालक्षयच्छौरि श्यामासममुखत्वतः॥१२॥ पृष्ठतस्तिष्ठतिष्ठति भाषिणी चासिधारिणीम् / श्यामां श्यामामिवाऽदर्शन्मुखे ak अंगारकेण नभसः पाते न्योतिताम्बराम् // 13 // चम्पायां साऽङ्गारेण द्विधाऽकारि दुन्दुर्दूनोऽधिकं हृदि / वीक्ष्य श्यामाद्वयं युध्यमानं मायेति चाऽबुधत् // 14 // स मुष्टिघातमवधीदङ्गारं गमनम् सारविक्रमः / प्रहारातेन तेनायं मुमुचे च नभोन्तरात् // 15 // पक्षिपातं पतंश्चैष चम्पापुर्या बहिःस्थिते / पपात सरसि स्खगिसरसीवातिविस्तृते // 16 // तत्तीर्चा हंसवत्तूर्ण तस्यासन्ने बने स्थितम् / वसुदेवोऽविशञ्चैत्यं प्रज्वलन्मणिदीपकम् // 17 // महातीर्थमिति श्रद्धाशुद्धान्तःकरणश्च स / भक्तिनम्रोऽनमद् वासुपूज्यं तत्र जिनं मुदा // 18 / / स निःसृत्य कृतकृत्यंमन्योऽस्माद् द्वारमण्डपे / अति| वाह्य निशाशेष विधायावश्यकान्यपि // 19 // प्रेयसीनामिव दिशां दातुं कुंकुममण्डनम् / युनीव भानौ स्वकरैरुदिते रागशालिनि / / ||20|| प्रभाते प्राविशञ्चम्पां मिलितेनाथ वर्मनि / ब्राह्मणेन सहकेन परब्रह्मैकमूर्तिना // 21 // त्रिवि०॥ स्थाने स्थाने तत्र वीणा| पाणीस्तरुणपूरुषान् / सोद्राक्षी कौतुकात् प्राप्तानिव गन्धर्वलोकतः॥२२॥ पप्रच्छ शौरिस्तद्हेतुं द्विजं सोऽप्येवमाख्यत / इहास्ति श्रीदवच्चारुदत्तः कोटीध्वजो धनी / / 23 / / रत्नाद्रिवि रत्नानां पाथोधिखि पाथसाम् / संख्यावानपि नो संख्यां खद्रव्याणामवेति सः // 24 // तस्य गन्धर्वसेनेति तनया विनयास्पदम् / कलानां सकलानामप्यऽस्ति सख्यैकदेवता // 25 // सुरीविद्याधरीरूपजैत्र पत्रमिवात्र या / रूपं धत्ते पदे वाक्ये प्रमाणे ख्यातिमीयुषी // 25 // यस्याः कलासु गान्धर्वेप्याकयेवातिवदुषीम् / ब्राह्मी शंके सशंके // 159 // वाऽऽसक्ता पुस्तकवीणयोः // 27 // यो मां जेष्यति गान्धर्वे स मे भाति संश्रवः / तस्यास्तेनाऽजनि जनो गान्धर्वेव रतोऽखिलः
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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