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________________ श्रीअमम जिन // 158 // | चरित्रम् श्यामावि जयसेनापरिणयनम् स्थाच्चिरं सुखम् / तत्र ताभ्यां सह रतिप्रीतिभ्यामिव कन्दर्पकः // 12 // युग्मम् // क्रूरः शूरतया नाम्ना त्वक्रूरस्तस्य जज्ञिवान् / सूनुविजयसेनायां सेनायामिव सञ्जयः // 93 // ततोऽपि प्रेरितोऽचालीत्कर्मभिसखैरिख / प्रापन्महाटवीं सिंहक्ष्वेडात्रासितदिग्गजाम् | // 94 // जलावतं सरस्तस्यां जलार्थी वृष्णिसूर्ययौ / अभ्यधावत्तत्र कोपी कोऽपीभः शैलसन्निभः // 95 / / शिक्षादक्षस्तमारुक्षत् खेदयित्वा स सिंहवत् / कलापारंगमर्यद्वा दम्यन्ते दुर्दमा अपि // 26 // हुत्वाऽचिमालिपवनञ्जयौ तं खेचरी ततः / स्वाम्युक्तौ कुञ्जराव तनाम्न्युद्याने व्यमुञ्चताम् // 97 // तस्मिन्नशनिवेगोऽस्मै विद्याधरपतिः सुताम् / श्यामां नामाभिरामांगीमदत्त प्रमदोद्धतः॥९८।। | वीणावाद्येन तुष्टत्वे तस्मात्साऽमार्गयद् वरम् / अवियोग सदैवाथ पृष्टा तद्धेतुमाख्यत // 99 // वैताये किन्नरगीते पुरेऽचिमाल्यऽभू नृपः / तस्याऽऽस्तां ज्वलनवेगाशनिवेगौ तनूद्भवौ // 100 // अचिमाली ज्वलनाय राज्यं दत्त्वाऽग्रहीद् व्रतम् / ज्वलनोऽङ्गारकं पुत्रं | विमलायामजीजनत् // 1 // अशनेः सुप्रभाजानेरहं तु तनयाऽभवम् / ज्वलनोऽगाद्दिवं राज्ये न्यस्य तं युवभूपतिम् // 2 // विद्यापी व्याऽऽददे राज्यमंगारेणापवाह्य तम् / मेघैः शम्पानिवद् भूपैर्दुरि सहजो रिपुः // 3 // भ्रष्टराज्योऽष्टापदेऽगान् मत्पिता तत्र चारणम् / | मुनिमंगिरसं नामाऽपृच्छद् राज्याप्तये पुनः॥४॥ सोऽप्याचख्यौ सुतायास्ते श्यामायाः पतिवैभवात् / राज्यं भावि स च ज्ञेयो जलावर्तेभनिग्रहात् // 5 // निवेश्यात्र पुरं तातः साधुवाक्प्रत्ययात् स्थितः / जलावर्ते प्राहिणोच्च नित्यं विद्याधरौ चरौ // 6 // दृष्टो जित्वा द्विपं तत्रारूढस्ताभ्यां त्वमत्र च / आनीतो जनकेनोद्वाहितश्चासि मया प्रिय ! // 7 // पूर्व श्रीधरणेन्द्रेण भुजंगेन्द्रेण चात्मना / समयोऽयं व्यवस्थापि सर्वैविद्याधरैः समम् // 8 // सस्त्रीकं मुनिपार्श्वस्थं जिनसमान्तिकस्थितम् / हन्ता यो भविता सोवाविद्यो विद्या| धरोऽपि सन् // 9 // अतः कारणतः स्वामिन्नबियोगमयाचिपि / मा दुष्टांगारको युष्मानऽभिभूद्देवतासखान् // 10 // ज्ञात्वेति वृष्णि व्याख्यौ सुतायास्ते श्यामाणिोच्च नित्यं विद्याधरी गन्द्रेण चात्मना / सम. // 158 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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