________________ // 157 // वसुदेवस्य देशाटनम् |न्मूकवद् गतप्राणवत्क्षणम् // 73 // श्रुत्वेदं पौरनार्योऽपि शोकोद्रेकोन्मनायिताः / स्पष्ट कष्टं विवृण्वत्यः पृथिवीलोठनादिभिः // 74 // | तरीतुमिव दुःखाब्धिमूर्वीकृतभुजद्वयाः / गृहीता इव भूतेन विष्वक् व्याकीर्णमूर्द्धजाः // 75 / / भेदं संरक्षितु स्वान्ततलागस्येव तद्वहिः / कर्षन्त्यो नेत्रवाहाभ्यां दुःखाम्भोबाष्पदम्भतः // 76 // हा क्लप्तमन्मथोन्माथ नाथ सौभाग्यसुन्दर / द्रष्टव्योऽसि पुनः केति प्रलम्पन्त्यश्चतुष्पथे // 77 // तारतारैः खरैर्वस्त्रक्नोपं ता रुरुदुस्तथा / यथोपलैरप्यऽरोदि कुलिशेनाप्यऽभेदि च // 78 // पं० | कु० // इत्थं शौर्यपुरे जाते करुणैकरसात्मनि / मृत्युमप्युररीचक्रुः काश्चित्काश्चित्तपःक्रियाम् // 79 / / अथ सन्निहितैस्तैस्तैविद्वद्भिबों| धितो नृपः / निःसारमन्ते संसारं घण्टाटंकारवद् विदन // 8 // संयोगं च वियोगं च सोपसर्ग द्विधातिदम् / जानननुपसर्ग तु | योगमेव सुखप्रदम् / / 81 // विदधे वसुदेवस्य प्रेतकृत्यं सयादवः। तद्गुणस्मरणान्मुक्तशोको राज्य क्रमादऽशात् / / 82 // त्रि. | वि०॥ इतोऽपि कृतदोषान्तं नक्षत्रस्थितिलोपकृत् / सच्चक्रप्रीतिविस्तारि शौरं तेजो व्यजृम्भत // 83 // वर्ण्यतेऽतो वसुदेवहिण्डि| प्रभृतिशास्त्रतः। हिण्डिः श्रीवसुदेवस्य नातिसंक्षेपविस्तरा // 84 // ततोऽनुपदि सन्तापशङ्काकाद् विनाऽध्वनि / कुमारः सुकुमारो | यानऽभवत्खेदमेदुरः / / 85 / / काचिद्रथस्था गच्छन्ती पितुर्वेश्मनि वर्त्मनि। तं स्वरूपं विलोक्य स्त्री स्वमातरमदोऽवदत् // 86 // दूरावोल्लंघनश्रान्तं विप्रं क्षिप्रं निजे रथे। एनमारोपय श्रेयः प्रसंगेनापि संचिनु // 87 / / सापि वृद्धा तथाकृत्वा ग्राम स्वं प्राप तत्र च / स्नात्वा भुक्त्या ययौ सायं कुमारो यक्षवेश्मनि // 88 // जनात्तत्र वसुदेवं दग्धं ज्ञात्वा चितानले। क्रन्दद्भिर्यादवैः सबैचक्रे प्रेतक्रियाऽखिला // 89 // वार्ता श्रुत्वेति तुष्टोऽन्तनिश्चिन्तः कौतुकात्ततः / क्ष्मां द्रष्टुं विजयखेटे पुरे दुन्दुरगात् प्रगे // 9 // युग्मम् / / सकलाभिरसामान्ये कन्ये सुग्रीवभूपतेः। श्यामाविजयसेनाख्ये कलाजयपणोद्धते // 91 // पर्यणैषीद् विनिर्जित्य क्रीडन्न // 157 //