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________________ श्रीअमम जिनचरित्रम् ज्ञाते भेदे विदेशगमनं दुन्दोः // 154|| | वोदकम् // 15 // पौरनारीमोहयितुं पुरे भ्राम्यति मेऽनुजः। राजैवं मन्यते धिग्मां वासेनाऽलं ततोत्र मे // 16 // वसुदेवो विमृश्येति | तां दासी नर्मकर्मणा / आवर्ण्य व्यसृजत्सद्यो गुढाकारेङ्गितस्तदा // 17 // रविविविशतां शंकया जलहस्तिनाम् / अश्वानां नेत्र मुद्रार्थमिवाकर्षत्प्रभापटम् // 18 // भास्वति त्रिजगद्दीपे शमिते कालवायुना / प्रसस्रेऽञ्जनवद् घान्तैनभसः कर्परादिव // 19 // विश्वं | जीर्णांशुकं ध्वान्तैर्नीलैनीलीरसैरिव / अकारि श्यामलं कालरजकेन समन्ततः // 20 // दिनस्य खञ्जनस्येवोदगात्सन्ध्यामिषाच्छिखा / | ततोऽयमभवद् विश्वलोचनानामगोचरः // 21 // अकारि तमसा हा धिक् विश्वं विश्वमचाक्षुपम् / निशानक्तश्चरीदेहरोचिपेव प्रसर्पता // 22 // प्रक्षिप्य गुटिकां वक्त्रे धृत्वा रूपान्तरं निशि / लोकैरलक्षितो दुन्दुर्योगीव निरगात्पुरात् // 23 // बहिर्गत्वा श्मशानेऽर्द्धदग्धैः | काष्ठश्चितां तताम् / कृत्वा शबमनाथं च ज्वालयामास तत्र सः // 24 // स्तम्भे चैकत्र तत्रायं चितांगारमषीद्रवैः / इति श्लोकद्वयं वस्त्रे | लिखित्वाऽलम्बयत् कृती // 25 // लोकैर्गुरूणां यत् ज्ञप्ता दोषत्वेन गुणा अपि / इति भूकश्यपो जीवन्मृतं मन्योऽग्निसादभूत // 26 / / | दोषं ततो ममासन्तं सन्तं वाऽभ्यूहित स्वयम् / क्षमध्वं गुरवः सर्वे सर्वे पौराश्च शैशवात् // 27 // यु० / / इत्थं स्वकर्मनायेऽसौ पात्रप्रावेशिकी ध्रुवम् / कृत्वा तां क्षामणां रंगादिव स्थानात्ततो द्रुतम् // 28 / / निःक्रम्य सूत्रभृद्विप्रवेषो भूत्वौषधीबलात् / भ्रान्त्वोत्पथेन | सन्मार्ग भेजेऽर्केण सह प्रगे // 29 / / इतश्च रजनीप्रान्ते वासवेश्मनि चेटिकाः / वसुदेवमपश्यन्त्योऽवीक्ष्याऽन्यत्र च सम्भ्रमात् // 30 // | एत्य विज्ञपयामासुः समुद्रविजयं नृपम् / सुकुमारः कुमारः क्वादिष्टो निश्येककः प्रभो ! // 31 // निजे निवासागारेऽस्ति नच ते मूल| मन्दिरे / नच कक्षान्तरे क्वापि सुहृदां न च वेश्मसु // 32 // न देवतासखश्चष याति रात्रौ क्वचिन्नयी / नचाऽभिभूयते मर्त्यमात्रेण बलिनाऽप्यसौ // 33 // तदवश्यमपाहारि हारितद्गुणमत्सरात् / सुप्तो देवादिना नाथ ! तद्वेषय तं द्रुतम् // 34 // पं० कु०॥ श्रुखेति सर्ग-५ // 154 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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