________________ // 149 // सिंहरथः दुन्दुना युद्धे पराजितः समुद्रविजयस्य जीव यशस्स्वरूप कथनम् | ग्रहं नामुचद् यदा / तदा व्यसजि सेनाभिभूरिभिः सह सद्दिने // 25|| युग्मम् // वसुदेवो ययौ शीप्रैः प्रयाणैरिसीमनि / आगात् | सिंहरथोऽप्यस्य सम्मुखः सिंहवद् बली // 26 // द्वयोश्च सैन्ययोयुद्धमुद्धताव्योरिवाजनि / लोला तरंगमालावञ्जयश्रीरप्यभूत्क्षणम् | // 27 // वसुदेवस्य सौभाग्याकृष्टयेव जयश्रिया। पक्षं समाश्रिते सेय॑तयेव द्रष्टुमक्षमः // 28 // स्वयं सिंहस्थस्तत्राभिचारचतुरः क्षणात् / खैकानुरक्तां तां कत्तुं शक्तिमानुपचक्रमे // 29 // वसुदेवोऽप्यभिमानाजिघांसुस्तं विरोधिनम् / अढौकिष्ट रथी दुष्टशासकः कंससारथिः // 30 // तौ शस्त्राशस्त्रि चक्राते शस्त्रविद्याविदौ चिरम् / सुरासुराविवेच्छन्तौ प्रियामेकां जयश्रियम् // 31 // रथादुत्तीर्य कंसोऽथ | पलिघेन बलीयसा। रथं सैंहरथं चूर्ण चक्रे पर्पटवत् जवात् // 32 / / कंसं जिघांसुनाकृष्टं खग सिंहरथेन च / भूकश्यपः क्षुरप्रेणाऽकर्तीत् कीर्तिमिव सरोः // 33 // वृकश्छागमिवोत्पाट्य बद्धा सिंहरथं हठात् / कंसश्च बलोत्कटोऽक्षप्सीद् वसुदेवरथोपरि // 34 // अबलात्मत्वमापन्ने क्लीबेऽप्यरिबलेऽद्भुतम् / आत्तसिंहरथः शौरिविजयश्रीवृतोऽचलत् // 35 // एत्य शौर्यपुरे भ्रातुर्दुन्दुः कन्दुकवत्पुरः। राज्ञः सिंहरथं बद्धं क्रीडानीतमदर्शयत् // 36 / / समुद्रविजयेनापि कुमारोऽथ जयागतः / स्नेहान्सर्वांगमामृश्य रहस्येवमगद्यत | // 37 // हितं मां क्रोष्टुकिनैमित्तिकः सप्रत्ययो रहः / इत्यूचेऽस्ति जरासन्धकन्या जीवयशा इति // 38 // निर्लक्षणा भर्तृपितृकुलयोः | क्षयकारिणी / साऽवश्य कूलयोः कूलंकषेव नृप बुध्यताम् / / 39 // यु०॥ तां ते दाता जरासन्धस्तुष्टः सिंहस्थापणे। तन्निराकृतये किश्चिदुपायं वत्स ! चिन्तय // 40 // जगत्प्रकाशिनोः सूर्यशशिनोरिव वंशयोः। नारी क्षयकरी दर्शरात्रिवत् त्रासकृन्नृणाम् // 41 // *प्रत्यवादीत्कुमारोऽपि बद्धा सिंहरथो रणे। इहानीयत कंसेन तद्दाप्याऽस्यैव सा सुता // 42 // राजाऽवदद् वणिकम्नुरित्येतां नैष लप्स्यते / शौर्यात्क्षत्रियवत् किन्तु लक्ष्यते नतु निश्चयः॥४३॥ वसुदेवोऽब्रवीदेवं ताहूय वणिक्कथम् ? / न पृच्छयतेऽस्य शपथैः // 149 //